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________________ भगवती सूत्र - श. ८ उ. ९ कार्मण शरीर बंध ७५ उत्तर - गोयमा ! णाणपडिणीययाए, णाणणिण्हवणयाए, णाणंतरापणं, णाणप्पओसेणं, णाणञ्चासायणयाए, णाणविसंवायणाजोगेणं, णाणावर णिज्जकम्मासरीरप्पओगणामाए कम्मरस उदपणं णाणावरणिजकम्मासरीरप्पओगबंधे । कठिन शब्दार्थ - णाणपडिणीययाए- ज्ञान की प्रत्यनीकता (विरोध) से, नानजिन्ह बणयाए - ज्ञान का अपलाप करने से, गाणंतराएणं ज्ञान में वाधक बनने से, नागप्पओसेणंज्ञान का द्वेष करने से, णाणच्चासायणयाए- ज्ञान की अत्यंत आशातना करने से, णाणविसंवायणाजोगेणं-ज्ञान के विसंवाद के योग से । भावार्थ - ७४ प्रश्न - हे भगवन् ! कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? ७४ उत्तर- हे गौतम! आठ प्रकार का कहा गया है । यथा-ज्ञानावरणीय कार्मण शरीर प्रयोग-बंध यावत् अन्तराय-कार्पण-शरीर प्रयोग-बंध । ७५ प्रश्न- हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है ? १५१९ ७५ उत्तर - हे गौतम! ज्ञान की प्रत्यनीकता (विपरीतता ) करने से, ज्ञान का अपलाप करने, ज्ञान में अन्तराय देने, ज्ञान का द्वेष करने, ज्ञान की आशातना करने, ज्ञान के विसंवादन योग से और ज्ञानावरणीय कार्मण- शरीर. प्रयोग नामकर्म के उदय से, ज्ञानावरणीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध होता है । ७६ प्रश्न - दरिसणावर णिजकम्मा सरीरप्पओमधे णं भंते ! करस कम्मस्स उदपणं ? ७६ उत्तर - गोयमा ! दंसणपडिणीययाए, एवं जहा णाणावर - णिज्जं, णवरं दंसणणामं घेत्तव्वं, जाव दंसणविसंवायणाजोगेणं दंसणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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