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________________ १५१८ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ९ तेजस् शरीर प्रयोग बंध गया है । यया-१ अनादि-अपर्यवसित और २ अनादि-सपर्यवसित । ७२ प्रश्न-हे भगवन् ! तेजस्शरीर प्रयोग-बन्ध का अन्तर कितने काल का है ? ७२ उत्तर-हे गौतम ! अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित, इन दोनों प्रकार के तेजसशरीर प्रयोग-बन्ध का अन्तर नहीं है। ७३ प्रश्न-हे भगवन् ! तेजसशरीर के देशबंधक और अबंधक जीवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? ७३ उत्तर-हे गौतम ! तेजस् शरीर के अबंधक जीव सबसे थोडे है। उनसे देश-बंधक जीव अनन्त गुण हैं। विवेचन-तेजस्शरीर अनादि है, इसलिये इमका सर्व-बन्ध नहीं होता । अभव्य जीवों के यह तेजस्-शरीर बन्ध अनादिअपर्यवसित है और भव्य जीवों के अनादि-सपयंवसित है । तेजस्शरीर समस्त संसारी जीवों के सदा रहता है, इसलिये इमका अन्तर नहीं है। - अल्पयन्व - तेजस्-शरीर के अबंधक मबसे थोड़ हैं, क्योंकि सिद्ध जीव और १४ वें गुणस्थान वाले जीव ही तेजस्-शरीर के अवंधक हैं। उनसे देशबन्धक अनन्त गुण हैं । क्योंकि तेजस्-शरीर समस्त संसारी जीवों के होता है और संसारी जीव मिद्धों से अनन्तगुण हैं । कार्मण-शरीर प्रयोग बन्ध ७४ प्रश्न-कम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णते ? ७४ उत्तर-गोयमा ! अट्टविहे पण्णत्ते, तं जहा-णाणावरणिजकम्मासरीरप्पओगबंधे, जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पओगबंधे । ७५ प्रश्न-णाणावरणिजकम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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