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________________ भगवती सूत्र-ग. ८ उ. ९ वैक्रिय गरीर प्रयोग बंध १५०५ ५९ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा वेउब्वियसरीरस्स सव्व. बन्धगा, देसवन्धगा असंखेजगुणा, अवन्धगा अणंतगुणा। भावार्थ-५८ प्रश्न-हे भगवन् ! अनुत्तरोपपातिक देव वक्रिय-शरीर प्रयोग-बन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? ५८ उत्तर-हे गौतम ! सर्व-बंध का अन्तर जघन्य वर्ष-पृथक्त्व अधिक इकत्तीस सागरोपम और उत्कृष्ट संख्यात सागरोपम का होता है । देश-बंध का अन्तर जघन्य वर्ष-पृथक्त्व और उत्कृष्ट संख्यात सागरोपम होता है। _५९ प्रश्न-हे भगवन् ! बैंक्रियशरीर के देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? ___५९ उत्तर-हे गौतम ! वैक्रिय-शरीर के सर्व-बंधक जीव, सबसे थोडे हैं, उनसे देश-बंधक असंख्यात गुणे हैं और उनसे अबंधक जीव अनन्त गणे हैं। विवेचन-वैक्रिय-शरीर, नौ कारणों से बंधता है। सवीर्यता, सयोगता आदि आठ कारण तो पहले बतला दिये गये हैं, नौवां कारण है-लन्धि । वायुकाय, पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच और मनुप्यों में-इन नौ कारणों से वैक्रिय-शरीर बँधता है । नैरयिक और देवों के आठ कारणों से ही बंधता है। उनमें 'लन्धि' कारण नहीं होती, क्योंकि उन के वैक्रिय-शरीर भवप्रत्ययिक होता है । .. वैक्रिय-शरीर-प्रयोग-बंध के भी दो भेद हैं-देशबंध और सर्वबंध । कोई औदारिक शरीरी जीव, वैक्रिय शरीर बनाते समय प्रथम समय में सर्व-बंधक होकर फिर मृत्यु को प्राप्त होकर देव या नैरयिक हो, तो प्रथम समय में वह सर्वबंध करता है । इसलिये वैक्रिय-शरीर प्रयोग-बंध का सवंबंध उत्कृष्ट दो समय का होता है । औदारिक-शरीरी कोई जीव, वैक्रिय. शरीर करते हुए प्रथम समय में सर्वबंधक होकर दूसरे समय में देश-बंधक होता है और तुरन्त हो मरण को प्राप्त हो जाय, तो देशबंध जघन्य एक समय का होता है । वैक्रिय-शरीर के दंश-बंध की स्थिति समुच्चय जीव में जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम की होती है । वायुकाय, तिर्यंच-पञ्चेन्द्रिय और. . मनुष्य के देश-बंध की स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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