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________________ भगवती मूत्र - ग. ७ उ. १० पाप और पुण्य कर्म और फल १२२१ को पापफल-विपाक सहित अर्थात् अशुभ फल देने वाले पाप कर्म लगते हैं ? ४ उत्तर-हे कालोदायिन् ! यह अर्थ योग्य नहीं है, किन्तु अरूपी जौवास्तिकाय में ही जीवों को पापफलविपाक सहित पापकर्म लगते हैं, अर्थात् जीव ही पापकर्म संयुक्त होते हैं। भगवान् के उत्तर को सुनकर कालोदायी बोध को प्राप्त हुआ। फिर उसने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके उसने इस प्रकार कहा ___"हे भगवन् ! मैं आपके पास धर्म सुनना चाहता हूँ। भगवान् ने उसको धर्म सुनाया। फिर स्कन्दक की तरह उसने भगवान के पास प्रवज्या अंगीकार की । ग्यारह अंगों का ज्ञान पढ़ा यावत् कालोदायी अनगार विचरते हैं। ___ विवेचन--अन्यतीथिकों में पञ्चास्तिकाय के सम्बन्ध में परस्पर वार्तालाप हुआ, उन्होंने भिक्षा लेकर जाते हुए गौतम स्वामी ने पूछा । गौतम स्वामी ने कहा कि वही ठीक है जो श्रमण भगवान् महावीर स्वामी प्ररूपणा करते हैं । गौतम स्वामी इतना कहकर भगवान् की सेवा में पधार गये । इसके बाद उन अन्यतीथिकों में से कालोदायी भगवान् के पास आया और उसने इस विषयक प्रश्न किया । भगवान् का उत्तर सुनकर उसे पूर्ण सन्तोष हुआ। फिर भगवान् से धर्म मुनकर बोध को प्राप्त हुआ और स्कन्धक की तरह प्रव्रज्या अंगीकार की। पाप और पुण्य कर्म और फल ५-तए णं ममणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ रायगिहाओ णयराओ, गुणसिलाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे गुणमिलए चेहए होत्था । तए णं समणे भगवं महा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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