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________________ १२२० भगवती सूत्र-श. ७ उ. १० कालोदायी की तत्त्वचर्चा और प्रव्रज्या अंतियं धम्मं णिसामेत्तए, एवं जहा खंदए तहेव पव्वइए, तहेव एक्कारस अंगाई जाव विहरइ । कठिन शब्दार्थ --महाकहा पडिवण्णे--महाकथा प्रतिपत्र--विशाल जनसमूह में धर्मोपदेश देने में प्रवृत, चक्किया--कर सकता है, आसइत्तए सइत्तए--बैठने सोने । २ उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी महाकथाप्रतिपन्न थे अर्थात बहुत से मनुष्यों को धर्मोपदेश देने में प्रवत थे। उसी समय कालोदायो वहाँ शीघ्र आया। 'हे कालोदायिन् !' इस प्रकार सम्बोधित करके श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने कालोदायो से इस प्रकार कहा-- .: . "हे कालोदायी ! किसी समय एकत्र बैठे हुए तुम सब में पंचास्तिकाय के सम्बन्ध में इस प्रकार विचार हुआ था कि यावत् यह बात किस प्रकार मानी जा सकती है ? हे कालोदायिन् ! क्या यह बात यथार्थ है ?" ___ "हां, यथार्थ है।" "हे कालोदायिन् ! पंचास्तिकाय सम्बन्धी बात सत्य है। में धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय पर्यन्त पांच अस्तिकाय की प्ररूपणा करता हूँ। उनमें से चार अस्तिकायों को अजीवास्तिकाय अजीव रूप कहता हूँ। यावत् पूर्व कथितानुसार एक पुद्गलास्तिकाय को रूपी अजीवकाय कहता हूँ। ३ प्रश्न-तब कालोदायी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से कहा कि "हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन अरूपी अजीवकायों के ऊपर क्या कोई बैठना, सोना, खडे रहना, नीचे बैठना और इधर उधर आलोटने इत्यादि क्रियाएँ कर सकता है ? ३ उतर-हे कालोदायिन् ! यह अर्थ योग्य नहीं है। केवल पुद्गलास्तिकाय ही रूपी अजीवकाय है, उस पर बैठना, सोना आदि क्रियाएँ करने में कोई भी समर्थ है। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रूपी अजीव पुद्गलास्तिकाय में क्या जीवों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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