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________________ ( १४१ ) 7 (३७) आगे आयनको प्रतिपादन करनेवाले छडे अध्या बमें दिगम्बर ' तीव्रमन्दाताज्ञातमात्रा किरनपीयविशेषः ऐसा छड्डा सूत्र मानते हैं. और वेताम्बर लोग 'नन्दा ताज्ञात भाववीयधिकरणेभ्यस्वद्विशेषः ' ऐसा सूत्र मानते है. ताम्बका कहना है कि जैसे तीव्रमन्दादि अभ्यन्तर तरहसे वीर्यमी अभ्यन्तर वस्तु है और अधिकरण यह बा वस्तु है और उस अधिकरणके भेदभी आगे दिखानेके हैं तो अधिकरणको आखिर मेंही रखना योग्य है. तृतीया लेके करण लेना या पंचमी से हेतु लेना और विशेषशब्दकी इधर जरुरत है या नहीं यह शोचने के काबिल होने परभी कर्ताकी चर्चा में इतना उपयुक्त नहीं है. इस स्थानमें सबसे ज्यादा ध्यान देनेका तो यह है कि इधर अधिकरण पदं समासमें आगया है इससे गौणका परामर्श होना नहीं मानके आगे सूत्र में 'अधिकरणं जीवाजीवाः' ऐसा कहकर अधिकरणशब्द स्पष्ट लेनकी जरूरत हुई, इसी तरहसे दूसरेस्थानों में समस्तपदोकी अनुवृत्ति करना सूत्रकारको इष्ट नहीं यह बात निश्चित होजाती है । J' ( ३८ ) इसी अध्यायमें सूत्र १३ में दिगम्बरो कषायोदयाची परिणामचारित्रमोहस्य' ऐसा सूत्र हैं. तब श्वेताम्बर लोग 'कषायोदया चीत्रात्मपरिणानवारिवनोदय' ऐसा पाठ मानते हैं श्वेताम्बरांका कहना ऐसा है कि इवर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org • Jain Education International
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
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