SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय देशना - हिन्दी "आत्मस्वभावं परभाव भिन्नं ॥ भगवान् महावीर स्वामी की जय ॥ I" aaa वस्तुधर्म और वस्तु इन दोनों में अन्तर है। वस्तु एक हो सकती है, पर वस्तु में धर्म अनेक हो सकते है। एक वस्तु अनेक धर्मात्मक है। वस्तु पदार्थ है, वस्तु धर्म गुण है। लोक में वस्तु को जाननेवाले अनेक धर्म हैं, पर वस्तु-धर्म को जाननेवाले उँगलियों पर गिनने लायक हैं। ध्यान दो वस्तुओं को जानने से मोक्ष नहीं होता, वस्तुधर्म को जानने से मोक्ष होता है। वस्तुधर्म गुणदृष्टि है, द्रव्य पर्यायदृष्टि है। वस्तुधर्म गुणात्मक है, वस्तु तो युगपत् है । द्रव्य, गुण, पर्याय युगपत् जिसमें हैं, वह वस्तु है। और वस्तु को जाने कैसे ? धर्म को धर्मी से भिन्न किया जाता है। बिना धर्म को जाने धर्मी का बोध नहीं होता । धर्म लक्षण है, धर्मी लक्ष्य है। लक्ष्य की प्राप्ति लक्षण से ही होती है। लक्ष्य का लक्षण ज्ञात नहीं है तो वह लक्ष्य में जायेगा, कि अलक्ष्य में जायेगा ? प्रश्न- भगवन् ! इस भावना के भाने का क्या फल है ? Jain Education International १५७ व्यतिकीर्ण वस्तुव्यावृत्ति हेतुर्लक्षणम् ॥ ( न्यायदीपिका) जिसके माध्यम से अनेक द्रव्यों से एक द्रव्य को पृथक् किया जाये, उसका नाम लक्षण है । हे जीव ! तेरा लक्षण स्पर्श, रस, गंध, वर्ण नहीं है । तेरा लक्षण ज्ञान-दर्शन है । तुझे अपने लक्षण का ही ज्ञान नहीं है, तो लक्ष्य को कैसे प्राप्त करेगा ? लक्ष्य की प्राप्ति लक्षण से होती है। तेरा लक्षण ज्ञान-दर्शन है, तेरा लक्षण ज्ञायकभाव है । समाधान - जो आदभावणमिणं णिच्चुवजुत्तो मुणी समाचरदि । सो सव्व - दुक्ख - मोक्खं पावदि अचिरेण कालेण ॥ ता.वृ.अ. गाथा । I हे मुनीश्वर ! हे योगीश्वर ! हे ऋषीश्वर ! जगत् में इतने पवित्र शब्दों की संज्ञा नहीं दी जाती । ये पवित्र संज्ञा मात्र उसे दी जाती है जिन्होंने दन्ति का दमन किया है। जिसने दन्ति का दमन किया है, वह भदन्त है। दन्ति यानी हाथी, दन्ति यानी इन्द्रियाँ । जिसने हाथी जैसे दन्ति का दमन किया हो, वही भदन्त है ऐसा भदन्त ही ऋषीश्वर है। वही योगीश्वर है। मुझे भगवान् कहने में आनन्द नहीं आ रहा, जितना योगी कहने में आनंद आ रहा है। भगवान तो लक्ष्य की पूर्ति है । लक्ष्य की पूर्ति का विषय भिन्न है। पर लक्ष्य प्राप्ति की ओर होता है । लक्ष्य दिख जाये जिसे उसे आनंद कितना आता है। जो वस्तु चाहिए थी, वह वस्तु भले मिले न, पर मिलते दिखने लग जाये, दीक्षा का मुहूर्त निकल आये, दीक्षार्थी को मालूम चल जाये कि अमुक तारीख को दीक्षा की संभावना है। जिस दिन दीक्षा होगी वह आनंद भिन्न होगा, आज का आनंद भिन्न है । क्योंकि दृष्टि लक्ष्य का ज्ञान हो चुका है। निर्ग्रन्थ दशा लक्ष्य प्राप्ति का ज्ञापक भाव है, और स्नातकदशा लक्ष्य प्राप्ति की लीनता है । अब आगम भाषा में बोलो। मुनिदशा भगवत् दशा प्राप्ति का मार्ग है। अरहंत भगवत् -स्वरूप हैं । अरहंतदशा भगवत् ही है, निर्ग्रन्थ दशा भगवत् दशा प्राप्ति का मार्ग है। मार्ग और मार्ग का फल दो हैं न । ये मुनिदशा है मार्ग, और अरहंत दशा है फल । जाना कैसे ? प्रमाण से । जाना किससे ? प्रमाण से जाना । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy