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________________ ७४ आनन्द प्रवचन | छठा भाग इस व्रत के विषय में बात करते समय अनेक व्यक्ति उपहासपूर्वक कहते हैं कि जब पति-पत्नी आपस में सम्बन्ध रखते ही हैं तो फिर क्या ब्रह्मचर्य का पालन हुआ और उससे क्या लाभ होने की सम्भावना होती है ? ___ किन्तु ऐसा कहने और विचार करने वाले व्यक्ति बड़ी भूल करते हैं। पति अगर अपनी पत्नी के अलावा अन्य किसी भी स्त्री की ओर कुदृष्टि से न देखे तथा पत्नी अपने पति के सिवाय किसी भी अन्य पुरुष का विचार मन में न लाये तो वे धर्मपरायण और दृढ़ आत्मशक्ति के धनी बनते हैं। सती सुभद्रा ने पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण नहीं किया था, किन्तु एकदेशीय ब्रह्मचर्य का पालन दृढ़ता से करती थी। उसका भी परिणाम यह हुआ कि उसने कुएँ से चालनी में पानी निकाल लिया तथा देवताओं के द्वारा बन्द किये हुए नगर के दरवाजों को खोल डाला। सेठ सुदर्शन ने भी एकदेशीय ब्रह्मचर्य का पालन किया था और उसके बल पर ही सूली को सिंहासन के रूप में परिवर्तित कर दिया । एकदेशीय ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाली महान् आत्माओं की कथाएं इतिहास में अनेकों मिलती हैं । महाभारत में आपने धृतराष्ट्र की पत्नी सती गांधारी के विषय में पढ़ा होगा। गांधारी भी पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली स्त्री नहीं थी। उसके सौ पुत्र थे, किन्तु वह पतिव्रता थी और अपने पति के अन्धे होने के कारण स्वयं भी सदा आँखों पर पट्टी बाँधे रहती थी। पातिव्रत्य धर्म के फलस्वरूप उसकी दृष्टि में इतनी शक्ति आ गई थी कि अगर वह किसी मनुष्य के शरीर पर मात्र दृष्टिपात ही कर देती तो उसका शरीर वज्र का हो सकता था। जब उसका पुत्र दुर्योधन पाण्डवों से लड़ रहा था उस समय किसी भी प्रकार से युद्ध में विजय प्राप्त न कर सकने पर और मृत्यु की आशंका होने पर दुर्योधन ने अपनी माता से अपने शरीर को वज्रमय बनाने की प्रार्थना की। प्रत्येक माता अपने पुत्र का हित चाहती है, गांधारी भी यही चाहती थी कि उसका पुत्र मृत्यु को प्राप्त न हो और वह युद्ध में विजयी बने । अतः उसने दुर्योधन से कहा- "बेटा ! तुम अपने शरीर पर से वस्त्र अलग करके मेरे सामने आ जाना, मैं उस पर अपनी दृष्टि डाल कर उसे वज्र के सदृश बना दूंगी।" दुर्योधन प्रसन्नता से फूला नहीं समाया और एक समय निश्चित करके नग्न होकर अपनी माता के समक्ष आने लगा। किन्तु अन्तर्यामी श्रीकृष्ण उसके गुरु निकले और ऐन वक्त पर आकर दुर्योधन से बोले "अरे भाई ! यह क्या करते हो ? गांधारी तुम्हारी माता हैं तो क्या हुआ, तुम अब शिशु तो नहीं हो। इतने बड़े होकर उनके सामने सर्वथा नग्न जाओगे ? लज्जा नहीं आएगी क्या तुम्हें ? कम से कम एक लंगोट तो शरीर पर रखो।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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