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________________ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग इस प्रकार वह लोक-परलोक, धर्म व अधर्म को न मानने वाला महानास्तिक व्यक्ति था, किन्तु करता क्या ? राजा का आदेश था अतः मन मारकर और मजबूरन उस मुनि के दर्शन करने के लिये सबके साथ जाना पड़ा । १२४ बड़ी धूम-धाम से दल-बल सहित राजा शहर से बाहर मुनिराज के दर्शन करने गए और वहाँ उनका धर्मोपदेश सुना । प्रवचन सुनकर सभी लोगों को बड़ा संतोष हुआ क्योंकि उसमें संयोगवश यही विषय आया था कि मानव शरीर मिला है तो धर्माराधन करके तथा व्रत नियमादि ग्रहण करके इसका समुचित लाभ उठाओ ।" लोगों पर मुनि के प्रवचन का बड़ा प्रभाव पड़ा । परिणामस्वरूप उपदेश की समाप्ति पर अधिकांश व्यक्तियों ने अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्रत-नियम अपनाये। धीरे-धीरे मंत्री का नम्बर भी आ गया । वह बड़ी कठिनाई में पड़ गया कि राजा के समक्ष वह किसी भी नियम को लेने से इन्कार कैसे करे और श्रद्धा • न होने पर नियम ले भी कैसे ? आखिर सोच-विचार कर उसने संत से कहा "महाराज, मुझे गीली वस्तु में गोबर न खाने का और सूखी वस्तु में पत्थर न खाने का नियम करवा दीजिये ।" सारी सभा मंत्री की बात सुनकर मन ही मन हँस पड़ी । पर मंत्री ने सोचा- 'वाह मैंने कितनी चतुराई का उदाहरण पेश किया है । साँप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी ।' इधर मुनिराज धीर-गंभीर स्वर से बोले - " कोई बात आप यही नियम ग्रहण कर लो। पर ध्यान रखना कि भोजन कंकर भी आ गया तो आपका नियम भंग हो जाएगा ।" - "हाँ इस बात का तो पूरा ध्यान रखूंगा महाराज ! पत्थर नहीं खाऊँगा ।" कहकर प्रधान जी महाराज के साथ रवाना हो गए । नहीं प्रधान जी ! में अगर छोटा सा Jain Education International भोजन में भी कंकर घर आने के बाद अब प्रधान जी को अपने लिये हुए नियम का ध्यान आया । वैसे वह अपनी बात के पक्के थे अतः रसोई का काम करने वाले कर्मचारियों से बोले'देखो ! खाने की सम्पूर्ण वस्तुएँ बड़ी बारीकी से साफ करके बनाया करो, एक भी कंकर भोजन में नहीं आना चाहिये अन्यथा तुम सबको नौकरी से बर्खास्त कर दूँगा।” For Personal & Private Use Only नौकर सभी सावधानी से काम करने लगे । हर समय उन्हें मालिक की नाराजगी का भय बना रहता था और मंत्री भी बहुत देख-भालकर भोजन करता www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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