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________________ २५८ देवीदास-विलास गीतिका छन्द विधि पूर्व जो जिनविम्ब पूजत द्रव्य अरु पुनि भावसों। अति पुण्य कीर्तिन कैं सु प्रापत होहि दीरघ आयु सों।। जाके सुफल कर पुत्र धन धान्यादि देह निरोगता। चक्रेश खग धरणेन्द्र इन्द्र सो होहि निज सुख भोगता।।२६।। (4) श्री अभिनन्दननाथ-जिन पूजा (४) दोहा धनुष सो साढ़े तीन सै, कंचन वरन शरीर। कपि लक्षण अवलोक के, अभिनन्दन प्रतिवीर।।१।। ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दनजिनचरणाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि। चाल परमादि मुनि की अति उज्ज्वल सु विशाल, शीतल प्रासुक पानी, ल्यायौ कर उत्साह, अति उत्कृष्ट निशानी। दूर करन के हेत, रोग तृषा अपरत के पूजौं चरण त्रिकाल अभिनन्दन-जिनवर के।।२।। ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दनजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन परम सुगन्ध, मलयागिर शुभ सीरौ, केशर मिश्रितगार सरस वरण अति पीरौ। मोहमयी आताप करन हेत निर्जर के, पूजौं चरण त्रिकाल अभिनन्दन-जिनवर के।।३।। ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दनजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। तन्दुल परम पवित्र सुलफाई कर कूटे, । परमंलता सु तरंग, सहित सुभाव अटूटे। धर लैकें भर थार, हेत अभय पद भर के, पूजौं चरण त्रिकाल अभिनन्दन जिनवर के।।४।। ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दनजिनचरणाने अक्षयपदप्राप्ताय अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। कमल केतकी वेल, अर मचकुन्द चमेली, रहित सुमन दुर्गन्ध सहित सुवास अकेली। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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