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________________ २०० देवीदास-विलास दोहरा अब नौ निध के नाम गुन सुनौ जथारथ रूप । जैनी बिन जानैं नहीं जिनको सहज सरूप । । १६ ।। चौपई प्रथम कालनिधि सुभ अकार सो अनेक पुस्तक दातार । महाकाल निधि दूजी कही याकी महिमा सुनियौ सही ।। १७।। असि सि आदिक साधन जोग सामग्री सब देइ मनोग | - तीजी निधि सर्प महान नाना विधि भाजन की खान । । १८ ।। पांडुक नाम चतुरथी होय सव रस धान समर्थै सोय ।। पदम पंचमी सुक्रत णेत वांछित रतन निरंतर देत । । १९ । । मानव नाम छटी निधि जेह आयुध जात जनम भुव तेह। सत्तम सुभग पिंगला नाम बहुभूषन आप अभिराम ।। २० ।। संख निधान आठमी गनी सब वाजित्र भूमका धनी । सर्व रतन नौमी निधि सार सो नित सर्व रतन भंडार ।। २१ । । दोहरा ए नौ निधि चक्रेस के सकटाकृति संठान । आठ चक्र संजुगत सुभ चौखंडी सब जान ।। २२ ।। जोजन आठ उत्तंग अति नव जोजन विस्तार । बारह मिति दीरघ सकल वसै गगन निरधार ।। २३ ।। एक एक के सहसमिति रखवाले जखदेव । ए निधि र वै पुन्यसौं सुखदाइक सुयमेव ।। २४ ।। चौदह रत्न वर्णन प्रथम सुदर्शन चक्र समथ्थ छहौ खंड साधन समरथ्थ । चंडवेग दिढि दंड दुतीय जिसबल खुलै गुफा गिरि कीय ।। २५ । । चर्मरतन सो त्रतिय निवेद महावज्रमय नीर अभेद । चतुरथ चूडामनि मनि रैन अंधकार नासेक सुख दैन ।। २६ ।। पंचम रतन काकिनी जान चिंतामनि जाकौ अभिधान । इन दौनौं थै गुफा मंझार ससि सूरज लिखिये निरधार ।। २७ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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