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________________ पुराणेतिहास- साहित्य-खण्ड कोट-कोट दरवाजे चार असे पुर सब बीस हजार । जिन कौ लगै पांच सौ गांव ते अटंव चउ सहस सुठांव । । २ । । पर्वत और नदी के पेट सोला सहस कहे ते खेट । कर्वट नाम सहस चौबीस केवल गिरवर बैठे दीस।।३।। पट्टन अडतालीस हजार रतन जहां उपजे अतिसार । एक लाख द्रोनामुख वीर सहस घाट सागर के तीर । । ४ । । गिर ऊपर संवाहन जान चौदह सहस मनोहर थान । अट्ठाईस हजार असेस दुर्ग जहाँ रिपु को न प्रवेस । । ५ । । उपसमुद्र के मध्य महान अंतदीप छप्पन परवान। रत्नाकर छबीस हजार बहुविधि सागर वस्त भंडार । । ६ । । रतन कुच्छि सुंदर सात सै रतनधरा थानक जह लसै । एपुर सू वस राजै खरे जैन धाम धर्मी जन भरे । । ७ ।। वर गयंदु चौरासी लाख इतने ही रथ आगम सार । तेज तुरंग अठारा कोर जे वट चलें पवन तैं जोर । । ८ । । पुनि चौरासी कोट प्रवान पायक संग महाबलवान। सहस छानवै बनिता सह गेहु तिनकौ अब वरनन सुन लेहु । । ९ । । आरजखंड बसै नरहंस तिनकी कन्या सहस बत्तीस । इतनै ही अति रूप रसाल विद्याधर पुत्री गुनमाल।। १० ।। पुनि मलेछ भूपन की जान राजकुमारी तावत मान । नाटक गन बत्तीस हजार चक्री नृप कौ सुखदातार । । ११ । । आदि सरीर आदि संठान पुव्वकथिति तन लच्छिन जान । वहुविधि विजन सहित मनोग हेमवरन तन सहज निरोग । । १२ ।। छहों खंड भूपत बलरास तिनसौ अधिक देह बल जास। सहस बत्तीस चरन तल रमै मुकुट बंध राजा नित नमै ।। १३ ।। भूप मलेछ छोड़ अभिराम सहस अठारह मानैं आन। पुनि गनबद्ध बखानै देव सोला सहस करै नृप सेव ।। १४ ।। कोट थाल कंचन निरमान एक कोड हल सहित किसान। नाना वरन गजकुल भरे तीन कोट ब्रज आगम धरे ।। १५ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only १९९ www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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