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________________ में धर्म और ईश्वर के नाम पर जितने भी पाखण्ड फैलाये गये हैं वे सब भोली जनता को फसाने के साधन मात्र हैं। उसके मत से साधनों के आधार से जीवन में जो विषमता आ गई है उसका कारण वर्तमान आर्थिक विषमता ही है। यदि उत्पत्ति के साधनों पर राष्ट्र का अधिकार हो जाता है तो ये सब बुराइयाँ सुतरां दूर हो जाती हैं। इसलिये उसके अनुयायी किसी भी उपाय द्वारा वर्तमान व्यवस्था को बदलने के लिये कटिबद्ध हैं। दूसरी ओर ईश्वरवादी अपनी बिगड़ी हुई साख के बिठाने में लगे हुए हैं। वे व्यक्तिस्वातन्त्र्य का दावा तो करने लगे हैं पर जो ईश्वरवाद परतन्त्रता की जड़ है उसे नहीं छोड़ना चाहते । वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि ईश्वर को तिलाञ्जलि देने पर वर्तमान व्यवस्था का कोई आधार ही नहीं रह जाता है। फिर तो समाजवाद के प्रचार के लिये अपने आप मैदान खाली हो जाता है। __ अब देखना यह है कि क्या इन दोनों में से किसी एक के स्वीकार कर लेने पर संसार का कल्याण हो सकता है? क्या व्यवस्था का उद्देश्य केवल इतना ही है कि या तो अनन्त काल के लिये किसी अज्ञात और कल्पित शक्ति की गुलामी स्वीकार कर ली जाय या सारा जीवन रोटी का सवाल हल करने में बिताया जाय। जहाँ तक हम समझते हैं ये दोनों व्यवस्थायें अपूर्ण हैं। एक ओर जहाँ ईश्वरवाद को स्वीकार करने पर व्यक्तिस्वातन्त्र्य का घात होता है वहाँ दूसरी ओर केवल भौतिक समाजवाद को स्वीकार करने से जीवन का कोई उददेश्य ही नहीं रह जाता। इसलिये आवश्यकता इस बात की है कि कोई ऐसा मार्ग चुना जाय जिसके आधार से ये सब बुराइयाँ दुर की जा सकें। हमारी समझ से अध्यात्मवाद में वे सब गुण मौजूद हैं जिनके आधार से विश्वकी ब्यवस्था करने पर जीवन का उद्देश्य भी सफल हो जाता है और आर्थिक व्यवस्था का भी सुन्दरतम मार्ग निकल आता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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