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________________ गीता इतिहास नहीं है । कृष्ण इतिहास नहीं है । सनातन दर्शन में इतिहास का महत्त्व नहीं है । सनातन ही क्या, भारतीय दर्शन में इतिहास का कोई वजूद नहीं है । इसीलिए राम और कृष्ण के पैदा होने की तारीख और जाने का वक्त कहीं इंद्राज नहीं है, क्योंकि भारत ने कभी इतिहास को नहीं माना, घटना के रस और उसके पीछे रही प्रेरणा को ही महत्त्व दिया । इसलिए इतिहास - पुरुषों की बायोग्राफिकल स्थितियाँ नहीं मिलतीं। कृष्ण की कोई बायोग्राफी नहीं है । मीरा, राबिया, सहजो बाई की कोई बायोग्राफी उपलब्ध नहीं है । इसीलिए कृष्ण को हमने रंग से जानने की कोशिश की। क्योंकि रंग अमर्त्य है, इम्मोरटल है । हमने कृष्ण के जितने नाम दिए, उनका अर्थ है कृष्ण । उनके नाम का कोई दूसरा अर्थ होता ही नहीं; और कृष्ण ऐसा रंग है जिसमें सारे रंग समा जाते हैं। गहराई का बोध है कृष्ण, गहराई की संज्ञा है कृष्ण । गांभीर्य का उपनाम है कृष्ण; माधुर्य का सर्वनाम है कृष्ण । नदी गहरी होती है तो सफेद नहीं होती, समुद्र गहरा होता है तो सफेद नहीं होता, उजलापन उथलेपन का परिचायक है । इसलिए हमने कृष्ण को उजला नहीं बताया । वे श्याम हैं । वे अतीत इसलिए नहीं हैं कि वे फिर-फिर आते हैं । इसलिए भविष्य से वर्तमान तक उनकी चहलकदमी है। उन्होंने स्वयं कहा अक्षराणाम् कारोऽस्मि द्वंद्वः समासिकस्य च । 1 मैं अक्षरों में अक्षर हूँ | मेरा क्षरण नहीं होता । मैं अक्षरों में अक्षर और समासों में द्वंद्व समास हूँ इसीलिए मैं मरता नहीं हूँ जबकि गीता के श्लोक में कहा गया है कि जब-जब धर्म की ग्लानि होती है तो मैं फिर-फिर आता हूँ | तो क्या गीता में विरोधाभास है ? नहीं, यह गीता का विरोधाभास नहीं है । कृष्ण कहते हैं- मैं तो होता ही हूँ समय में, क्षण में, लेकिन कभी-कभी अवतरण की अनिवार्यता पर रंगों से बाहर जाता हूँ, जिसे आप जन्म मान लेते हैं, अवतार मान लेते हैं । 1 महाभारत के युद्ध की तैयारी हो चुकी है, व्यूहरचना पूरी तरह बन चुकी है । श्रीकृष्ण एक सारथी के रूप में अर्जुन के रथ को कुरुक्षेत्र के ठीक मध्य प्रांगण में ले आये हैं, ताकि अर्जुन एक नज़र डाल सके अपने पक्ष और विपक्ष पर और अगर इस अन्तिम आह्वान में कोई दल-बदल करना चाहे तो वह भी कर सके । युधिष्ठिर कह ही देते हैं कि अगर कोई भी व्यक्ति धर्म और सत्य के लिए अपने आपको पांडवों को समर्पित करना चाहे, तो उसका स्वागत है । युयुत्सु जैसे लोग Jain Education International For Personal & Private Use Only चुनौती का सामना | 13 www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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