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________________ लोग हँसी-खुशी के साथ घर में प्रवेश करते हैं, और एक साथ हिल मिलकर, एक दूसरे को देखकर अपने जीवन में सुकून और आनन्द लेते हैं तो उनकी साँझ और रात भी दिवाली की तरह सुखदायी हो जाती है। भाई के प्रेम और बड़ों के आशीर्वाद से बढ़कर भला और कौनसी दिवाली होगी। ईंट, चूने, पत्थर से जिसका निर्माण होता है, उसे घर नहीं, मकान कहते हैं। जिस मकान में पत्नी, बच्चे और पतिदेव रहते हैं, उसे घर कहते हैं, पर जिस घर में माता-पिता और भाई-बहिन के लिए भी सम्मान का स्थान होता है जी हाँ, उसे ही परिवार कहते हैं, उसे ही स्वर्ग कहते हैं। हम कुछ ऐसी पहल करें जिससे हमारा घर मकान नहीं बल्कि परिवार बने, धरती का स्वर्ग बने। ___परिवार तो सामाजिक जीवन की रीढ़ है। सामाजिक जीवन का पहला मंदिर परिवार ही है। परिवार बच्चों की पहली पाठशाला है और सामाजिक जीवन का पहला मंदिर। परिवार का माहौल जितना सुन्दर होगा, नई कोंपलें उतनी ही सफल और मधुर होंगी। स्कूल में पुस्तकीय शिक्षा तो प्राप्त हो जाती है, लेकिन सुसंस्कारों की पाठशाला तो उसका अपना घर ही है। सामाजिक चरित्र के निर्माण के लिए, गरिमापूर्ण समाज के निर्माण के लिए, अहिंसक और व्यसनमुक्त समाज के निर्माण के लिए परिवार का अहिंसक, व्यसनमुक्त और गरिमापूर्ण होना आवश्यक है। ___ एक सप्ताह में सात वार होते हैं। मैं एक आठवाँ वार' बताता हूँ और वह वार है 'परिवार' । जहाँ घर के सारे सदस्य एक ही छत के नीचे मिल-जुल कर रहते हैं वहाँ परिवार होता है। जहाँ सातों दिन इकट्ठे होते हैं उसे सप्ताह कहते हैं। इस रहस्य से आप समझ सकते हैं कि आपकी एकता, सद्भावना और समरसता आपके परिवार का आधार बनती है। सात दिनों को एक कर दो तो वह सप्ताह बनता है और सप्ताहों को एक करो तो महिना और महिनों को संयोजित करो तो वर्ष निर्मित होता है। यही मेल-मिलाप परिवार के साथ भी लागू होता है। भाई-बहिन, सास-बहू, देवरानीजेठानी जहाँ मिलते हैं, वह परिवार है। परिवारों की एकता समाज बनाती है। समाजों से ही धर्म, राष्ट्र और विश्व अपना अस्तित्व रखते हैं। अलग-अलग भागों में बँटा हुआ देश, अलग-अलग भागों में बँटा हुआ धर्म, अलग-अलग भागों में बँटा हआ समाज और परिवार कुछ भी नहीं होता। न परिवार, न समाज, न धर्म और न देश। एक सूत्र में रहना ही परिवार को एक रखने का राजमंत्र है। एक-दूसरे के प्रति त्यागपरायणता रखने से ही किसी का भी घर एक रह सकता है। एक सूत्र में बँधे घर से बढ़कर कोई मंदिर या मकान नहीं होता और न स्वर्ग या मधुवन होता है। जहाँ घर के 10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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