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________________ जबकि सारी महिलाएँ हम पुरुषों से ही तो प्रभावित होती हैं। वज़ह कोई ये गुलाबी होंठ नहीं है। आप ढंग से नहीं बोलती, इसलिए आपको होंठ गलाबी करने पड़ते हैं। हम ढंग से बोलते हैं इसलिए हमें होंठों को गुलाबी करने की ज़रूरत नहीं रहती। अगर होंठों को गुलाबी करने से ही खूबसूरती बढ़ती हो तो सारे लोग कल से हनुमान जी का चेहरा बना लो, होंठ ही क्यों पूरा चेहरा ही रेड एण्ड व्हाईट कर लो। इंसान की खूबसूरती इंसान की जुबान से हुआ करती है। चेहरे की खूबसूरती का मूल्य केवल 20% प्रतिशत है, बाकी सारा मूल्य कहीं और से जुड़ा है। भई गोरा आदमी अच्छा तो लगेगा। गोरी महिला सबको अच्छी लगेगी। ऐश्वर्या राय आ जाएगी तो सबको लुभाएगी, पर इसका मतलब यह नहीं कि शाहरुख बुरा लगेगा। सभी लोग अच्छे लगते हैं, कुल मिलाकर इंसान की जुबान अच्छी होनी चाहिए। बोलने की कला, जब इंसान पैदा होता है तब से बोलना शुरू करता है और मरता है तब तक बोलता ही बोलता रहता है। रात अगर न हो तो इंसान रात भर भी बोलता रहेगा। सच्चाई तो यह है कि जो आदमी दिन में चुप रहता है, रात को वह सपने में भाषण दिया करता है। भाषण पर कोई राशन तो लगता नहीं है। राशन पर भाषण ज़रूर है, पर भाषण पर राशन नहीं है। आदमी बचपन से, जन्म से ऊँ, आँ, ईं बोलना शुरू करता है, थोड़ा-सा बड़ा होता हे तो मी, माँ, मा-मी, थोड़ा और बड़ा होता है तो का-की, जी-जी, थोड़ा और बड़ा होता है तो स्कूल जाता है तब असे अनार, आ से आम, इ से इमली और उ से उल्लू बोलना सीखता है। हाँ, कोई मेरे पास आ जाए, किसी चन्द्रप्रभ की पाठशाला में आ जाए तो असे अदब सीखेगा, आ से आत्म-विश्वास लाएगा, इसे इबादत करेगा, बड़ी ई से ईमानदार बनेगा। स्कूल में उ से उल्लू सिखाया जाता है। मेरे पास उ से उत्साह सिखाया जाता है। जुबान ठीक करेंगे तो वक्तव्य खुद ही ठीक हो जाएगा। इसीलिए कभी महावीर ने भाषा समिति की बात कही थी। भाषा-समिति यानी विवेकपूर्वक बोलो। इंसान को बोलने की कला आनी चाहिए। इंसान भाषा से, इस जुबान से पचास प्रतिशत काम सुधार लेता है और इसी जुबान से पचास प्रतिशत काम बिगाड़ लेता है। अगर इसको ठीक से इस्तेमाल करना आ जाए तो बिगड़े हुए काम सुधर जाते हैं । झगड़े मिट जाते हैं, जो अब तक कैंचियाँ चलती थीं वो सुई-धागे बन जाया करते हैं। मेरे भाई और मेरी बहनों! जुबान को सुई-धागा बनाओ ताकि टूटे हुए दिल फिर से जुड़ सकें। टूटे 95 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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