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________________ मेरे वक्तव्य को सुनने के 10 डॉलर की फीस भी निर्धारित कर दी जाए, तो मेरा हर वचन, हर शब्द आपके लिए बेशक़ीमती हो जाएगा। आख़िर आदमी ने उसके पैसे दिए हैं। बहुत से नामी-गिरामी संतों ने मुफ़्त की क़ीमत समझ ली, सो जो कुछ उन्होंने दुनिया को सिखाया, उसकी क़ीमत वसूली। बस, क़ीमत देते ही वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है । वक़्त की भी वसूली होनी चाहिए। जिंदगी में एक साल की क्या क़ीमत होती है यह तो कोई उस विद्यार्थी से पूछे जिसने साल भर पढ़ाई की, पर परीक्षा देने से रह गया। एक महिने की क़ीमत क्या होती है, यह तो कोई ऐसी माँ से पूछें जिसका बेटा नौ माह की बजाय आठवें महिने में ही पैदा हो गया। जिंदगी में एक सप्ताह की कीमत क्या होती है, यह वही व्यक्ति बता सकेगा जो कि साप्ताहिक अखबार निकालता है, पर इस सप्ताह प्रिंट करने में विलंब हो गया तो उसका अखबार पोस्ट होने से ही रह गया। एक दिन की क़ीमत क्या होती है, यह उस मजदूर से पूछो जिसने दिन भर मेहनत की मगर मालिक ने पैसा देने से इन्कार कर दिया। एक घंटे की क़ीमत क्या होती है, यह कोई सिकंदर से पूछे जिसने कहा था अगर मेरी जिंदगी केवल एक घंटे के लिए बढ़ा दी जाए तो मैं अपने शरीर के भार जितना सोना तोलकर दे सकता हूँ । एक मिनट की क़ीमत क्या होती है यह ऐसे व्यक्ति से जाकर पूछो जो वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हुए आतंकवादी हमले से एक मिनट पहले बाहर निकल गया। एक सेकंड की क़ीमत क्या होती है, यह कोई ऐसे धावक से पूछे जो कि ओलम्पिक में केवल एक सेकंड के कारण स्वर्ण पदक की बजाय कांस्य पदक पर अटक गया। जिसने वक़्त की क़ीमत समझी है, उसी ने वक़्त का सही और पूरा उपयोग किया है। चूँकि भगवान ने हम लोगों को मुफ़्त का वक़्त दे रखा है तो अभी जैसे साढ़े नौ बजे इस समय पंडाल पूरा भरा है, पर जिन्होंने वक़्त की क़ीमत समझी, जो सत्संग के वचन की क़ीमत समझते हैं वे पौने नौ से पाँच मिनट पहले पहुँच जाते हैं। जिन्होंने ईश्वरीय चित्र के आगे दीप प्रज्वलन को अपना सौभाग्य समझा, वे पहले पहुँचेंगे। जिन्होंने प्रार्थना को प्रभात का पुष्प समझा वे पहले पहुँच गए। जिन्होंने समय की कीमत न समझी वे लेट-लतीफ चलते हैं । सोचो भाई ! समय तो आगे बढ़ रहा है कहीं हम तो ठहर नहीं गए हैं! हम भी आगे बढ़ रहे हैं या जहाँ हैं वहीं अटके पड़े हैं ! Jain Education International For Personal & Private Use Only 35 www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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