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________________ हमारी आँखों में होगी । माना दुनिया में पेट करोड़ों हैं, पर हाथ भी तो भगवान ने दोगुने दिये हैं । फिर किस बात की व्यक्ति चिन्ता करे। हम पुरुषार्थ करेंगे, हम नये सपने देखेंगे, हम नये लक्ष्य बनाएँगे, संघर्ष करेंगे और जिंदगी को नया और सार्थक परिणाम देंगे। प्रकृति, हमें हर रोज नया दिन देती है, नई रात देती है, 24 घंटे हर रोज़ देती है । वह जिंदगी देती है, जिंदगी में हर रोज़ एक नया दिन देती है। उसने आपको पत्नी दी, पति दिया, माँ-बाप दिये, भाई-बहन दिये, बंगला दिया, गाड़ी दी, कार दी, स्कूटर दिये, सुख-साधन दिये । वह सबको देती ही देती है। हर रोज 24 घंटे भी देती है। अगर आपके यहाँ कोई मज़दूर काम कर रहा है और रोजाना वह 200 रुपये की मज़दूरी लेता है, पर 10 मिनट भी वह ऐसे ही आराम करने के लिए बैठ जाए तो आपका मिज़ाज़ कैसा होगा? चार गालियाँ ठोकेंगे और कहेंगे कि मुफ़्त का पैसा लेता है क्या। हम ऐसा क्यों कहते हैं? क्योंकि हम उसको पैसे देते हैं । आधे घंटे की क़ीमत हमने समझी है 10 रुपया । यह उसकी क़ीमत है आधे घंटे की। आप तो ऑफिसर हैं, सेठ हैं। आपकी क़ीमत तो मज़दूर के घंटे की क़ीमत से कई गुना ज्यादा है । आप झाडू लगाते हैं और चार तिनके झाड़ू में से निकल जाते हैं तो आप झाडू की रस्सी खौलकर वापस वे तिनके उसमें डालते हैं, क्यों? क्योंकि हमने झाड़ू के एक-एक तिनके की क़ीमत चुकाई है । बहूरानी अगर कह भी दे मम्मी जी अब चार तिनके गिर गए तो क्या हुआ, फेंक दें। मम्मी झट से कह देगी, बेटा ! पैसा मुफ़्त में नहीं आता। झाडू पूरे 30 रुपये में खरीद कर लाई हूँ, ऐसे अगर चार-चार तिनके रोज़ फेंक दिए तो झाडू तीन दिन में ही ख़तम हो जाएगा। इस स्वार्थ भरी दुनिया में केवल पैसे की क़ीमत आँकी जाती है । यहाँ वक़्त की, समय की क़ीमत नहीं आँकी जाती। समय इंसान को मुफ्त में मिलता है। मैं तो प्रभु से कहूँगा कि भगवान, आने वाले कल में ऐसी व्यवस्था भी कर देना कि अगर इंसान को वक़्त भी चाहिए तो वक़्त की वसूली ज़रूर करना, क्योंकि मुफ़्त का तो अखबार भी मिल जाए तो उसकी क़ीमत नहीं होती । 2 रुपया दे दो तो सुबह से लेकर साँझ तक अखबार को पढ़ते और सहेजते रहेंगे और मुफ़्त का अखबार मिल जाए तो उसी पर चाट-पकोड़ी खाना शुरू कर देंगे, क्योंकि मुफ़्त की क़ीमत इतनी ही होती है। मैं भी अगर आप लोगों को मुफ़्त में सुना रहा हूँ तो मुझे पता है कि मेरी क़ीमत इतनी है, वहीं अगर मैं अमेरिका चला जाऊँ और अगर 34 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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