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________________ जिंदगी में हमारी व्यवस्थाएँ तो देखिए कि दो चाहते हैं तो दस मिलता है। दस चाहते हैं, सौ मिलता है। कहते हैं, कई संतों को तो बराबर खाने को भी नहीं मिलता और यहाँ स्थिति यह है कि कोई खाने वाला नहीं मिलता। __ जब संत बने थे तब सारी चीजें छोड़कर आये थे, पर एक चीज़ अपने साथ लेकर आये, और वह है हमारी अपनी क़िस्मत, हमारा अपना आत्म-विश्वास। अपने कर्म को जगाओ, कर्मयोग को जगाओ। हर व्यक्ति चौबीस घंटे में से 12 घंटे मेहनत अवश्य करे फिर वे बारह घंटे चाहे दिन के हों या रात के। चाहे आप डे ड्यूटी करें या नाईट ड्यूटी करें, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जो व्यक्ति 6 घंटे मेहनत करता है वह अपने भाग्य का केवल 40 प्रतिशत हिस्सा कमा पाता है। जो व्यक्ति 8 घंटे मेहनत करता है वह व्यक्ति 60 प्रतिशत हिस्सा अपने भाग्य का कमाता है। जो व्यक्ति 12 घंटे मेहनत करता है वह 80 प्रतिशत भाग्य का कमाता है लेकिन जो व्यक्ति 16 घंटे रोज मेहनत करता है वह 100 प्रतिशत अपने भाग्य का फल प्राप्त करने में सफल होता है। परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि हमने अपनी तरफ से अपना कितना पुरुषार्थ किया, कितना कर्म किया। कर्मयोग के हल से ही खंडप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ बनाया जा सकता है। इसीलिए मैं कहा करता हूँ कि बारहखड़ी में पहले क आता है, पीछे ख आता है। क यानी पहले करो,ख यानी पीछे खाओ।कर्मयोग से जी मत चुराओ। कर्म तो कामधेनु की तरह होता है, जो कि हर इंसान को अपना मनोवांछित दिया करता है। इंसान का कर्मयोग तो इंसान के लिए किसी कल्पवृक्ष की तरह हुआ करता है। तुम उससे जो परिणाम पाना चाहो वह हर परिणाम तुम्हें उपलब्ध हो जाया करता है। निठल्ले मत बैठे रहो, निठल्ली जिंदगी मत जीओ। निठल्लापन अपराध है। अगर एक महीने में एक दिन भी निठल्ला बीत जाए तो समझ लेना वह दिन आपके जीवन का व्यर्थ गया। खुद के गाल पर चाँटा मारकर या दस मिनट मुर्गा बनकर उस निठल्लेपन का प्रायश्चित कर लेना, ताकि भविष्य में वह निष्क्रियता दुबारा न दोहराई जाए। खुद-ही-खुद को दण्ड दें कि तीन दिन में मेरे वे दो दिन बेकार गए। मैंने कुछ भी न किया केवल मटरगश्ती में, ताश और केरम खेलने में मैंने वे दो दिन बिता डाले। भगवान ने आलस्य की जिंदगी जीने के लिए हमें जिंदगी नहीं दी है। भगवान ने हमें जिंदगी इसलिए दी है कि धरती पर आए हैं तो कुछ फूल खिलाएँ। कुछ ...| 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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