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________________ अभ्यास 1. शब्दार्थ : कयाई = कभी प्रासत = आसक्त - उक्कंठिय = उत्कंठित पडिबोह = समझाना जगंधणं = फांसी रणनं = मनोनुकूल गवक्ख = झरोखा पासाय = महल कयत्थ - कृतार्थ पत्थ = याचना करना पच्छन्न = छिपा हुआ सुयरण = सुन्दरी पारगच्चान-प्राण त्याग जलग = अग्नि = बनाया दुकल = रेशम नत्तणय = नवीनता रसवई = रसोई 2. वस्तुनिष्ठ प्रश्न : सही उत्तर का क्रमांक कोष्ठक में लिखिए : 1. राजा ने मदनश्री के पास अपना संदेश भेजा(क) पत्र के द्वारा (ख) कबूतर के द्वारा (ग) दासी के द्वारा (घ) स्वयं जाकर [] 3. लघुत्तरात्मक प्रश्न : प्रश्न का उत्तर एक वाक्य में लिखिए : 1. मदनश्री ने राजा का प्रेम-निवेदन क्यों स्वीकार किया ? 2. मदनश्री ने किस दृष्टान्त से राजा को समझाया ? 3. विक्रमसेन राजा ने अन्त में क्या कहा ? 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : शब्दरूप मूल शब्द विभक्ति वचन नयरीए नयरी सप्तमी , ए. व. तीए महाराएग महाराज हिययं हियय विसेसेरण सदारेसु सदारा लिग स्त्री . सर्व. .... ....... ............ ............ ........... 86 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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