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________________ माया-1. फल खाने वाले, आकाश में हमेशा घूमने वाले, जगल में रहने वाले; ... विवेक से रहित तुम एक छोटे पक्षी हो। 'यदि तुम मेरे दुःख को दूर करने वाले होते तो तुम्हारे सामने रहस्य का कथन करना उचित है । जो अज्ञानी अपने रहस्य वृतान्त- को दूसरों से कहता है वह केवल अपमान के स्थान को ही पाता है । क्योंकि कहा भी है - .. गाथा-2. जो अज्ञानी जिस-किसी व्यक्ति को अपना रहस्य कहता है वह पद-पद पर अपने कार्य की हानि और विपत्ति को ही पाता है । अतः रहस्य के वृतान्त को न उघाड़ना ही अच्छा है ।' तब वह तोता कहता है-'हे. महादेवी ! इस प्रकार की शंका करने से क्या लाभ ? क्योंकि पक्षी जिस-जिस कार्य को कर देते हैं उसे करने में मनुष्य भी असमर्थ हैं ।' यह सुनकर विस्मित मन वाली वह कहती है-'हे तोते ! झूठ बोलते हुए लज्जित क्यों नहीं होते हो ? ज्ञान से रहित पक्षी जाति मनुष्य से कैसे चतुर हो सकती है ? तब तोते ने कहा-'हे देवी! संसार में पक्षियों के समान कौन है ? तीनों खण्डों के स्वामी वासुदेव विष्णु का वाहन पक्षीराज गरुड़ है। कवियों के मुख की शोभा, वर प्रदान करने वाली, अज्ञान का अपहरण करने वाली भगवती सरस्वती हंस (पक्षी) के वाहन पर ही सुशोभित होती है । यहाँ पर उनकी शोभा का कारण प्रक्षी ही है। एक सेठ की, कामवारण की बाधा को न सहने वाली किसी प्रियतमा के मील की रक्षा एक तोले ने नयी-नयी कथाओं को सुनाकर की थी, क्या तुमने यह नहीं सुना है ? राजा नल और दमयन्ती का सम्बन्ध कराने वाला एक हंस ही था। इस प्रकार संसार में पक्षियों के द्वारा अनेक उपकार किये गये हैं। अक्षरमात्र को पढ़ने वाले पक्षी भी जीवदया का पालन करते हैं । आगम में भी तिर्यन्चों (पशुपक्षियों) को पांचवें गुणस्थान का अधिकारी कहा गया है । हम यद्यपि आकाश में चलने वाले होते हैं, किन्तु फिर भी शास्त्रों के सार को जानने वाले होते हैं । अपनी जाति की प्रशंसा उचित है, किन्तु दूसरों को हीन समझना ठीक नहीं है।' ... 188 प्राकृत मद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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