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________________ दूसरों को उपदेश देते हैं, किन्तु स्वयं धार्मिक कार्यों में संलग्न नहीं होते हैं। ऐसे श्रोताओं को दूसरी पुतली के समान जाना चाहिए।'' इसलिए मैंने दूसरी पुतली का मूल्य मात्र एक रुपया कहा है।' 'तीसरी पुतली के कान में डाला गया तार बाहर नहीं निकला, परन्तु उसके हृदय में उतर गया। वह पुतली यह शिक्षा देती है -"कुछ समझदार जीव मेरे समान होते हैं, जो परलोक के हितकारी वचनों को अच्छी तरह सुनते हैं और धर्म के कार्यों में यथाशक्ति संलग्न रहते हैं। ऐसे श्रोताओं को तीसरी पुतली के समान जानना चाहिए।" इसलिए मैंने तीसरी पुतली का मूल्य एक लाख रुपया बताया कालिदास के ऐसे कथन को सुनकर राजा भोज एक अन्य पंडित भी संतुष्ट हुए । वह पराजित विदेशी दुखी मन से उन एक लाख चांदी की मुद्राओं को राजा के आगे रख देता है। राजा उस सब को कालिदास को अर्पित कर देता है। oco पाठ २७ : परोपकारी पक्षी तब उसके पुण्य से प्रेरित कोई एक तोता कहीं से आकर आम्रवृक्ष की शाखा पर बैठा। कुम्हलाये हुए मुखकमल वाली वोरमती को देखकर परोपकार में , संलग्न वह तोता मनुष्य की भाषा में उससे कहता है-'हे सुन्दरी ! तुम क्यों से रही हो ? बसन्त ऋतु की क्रीड़ा के मनोरंजन को छोड़कर दुःख से दुखी क्यों दिख रही हो ? मुझे अपना दुःख कहो ।' ... उस वीरमती ने तोते से ऐसे वचन सुनकर ऊपर देखा । मनुष्य की भाषा में बोलने वाले उस श्रेष्ठ तोते को देखकर कौतुहल से युक्त हो मौन त्यागकर वह कहती है-'हे पक्षी ! मेरे मन की भावना को जानकर तुम क्या करोगे ? क्योंकि प्राकृत गंध-सोपान 187 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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