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________________ उस बात को देखकर पटरानी ने राजा को निवेदन किया-'मैं भी आपके साथ आकाशमार्ग से देशान्तर में जाना चाहती हूँ।' तब राजा ने कोक्कास को बुलाकर कहा- 'महादेवी भी हमारे साथ चलें ।' ऐसा कहने पर कोक्कास ने कहा-'हे स्वामी ! उस पर तीसरे का चढ़ना उचित नहीं है। दो ही जनों को यह विमान ले जा सकता है।' तब वह रानी आग्रह करके रोकी जाती हुई भी अपनी जिद करती है। अज्ञानी राजा भी उपके साथ जहाज पर चढ़ गया । तब कोक्कास ने कहा-'हमें पछताना पड़ेगा। दुर्घटना अवश्य होगी।' ऐसा कहकर विमान पर चढ़ते हुए उसने तन्त्री को खींच दिया, आकश को ले जाने वाली यन्त्र की कील पर चोट की तो वह विमान बाकाश में उड़ चला । बहुत योजन दूर चले जाने पर अतिरिक्त भार के भर जाने पर तन्त्री टूट गयी, यन्त्र नष्ट हो गया, कील गिर गयी और धीरे से वह विमान जमीन पर स्थित हो गया। वह कोक्कास और रानी सहित राजा पहले बात न सुनने से पश्चाताप से दुखी होने लगे। 000 पाठ १५ : अग्निशर्मा का अपमान यहाँ पर ही जम्बूद्वीप द्वीप में, अपरविदेह देश में ऊँचे, सफेद परकोटे से सुशोभित, कमलिनियों के वन से ढकी हुई खाई से युक्त, तिराहे, चौराहे एवं चौकों से अच्छी तरह विभक्त, भवनों से इन्द्र के भवन की शोभा को जीतने वाला क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर था। गाथा- 1. जिस देश की कामिनियां अपने मुखों से कमलों को, वाणी से कोयल को, नेत्रों से नीलकमलों को और अपनी गति से राजहंसों को जीतती हैं । 2. जहाँ पर पुरुषों को विद्याओं में व्यसन था, निर्मल यश में लोभ था, सदा पापों में भीरुता थी तथा धर्म के कार्यों में संग्रह-बुद्धि थी। . 156 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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