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________________ बहुत से अलंकारिक व्यक्ति (शरीर की सेवा और श्रृंगार करने वाले नाई आदि) जीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गये । वे बहुत से श्रमणों. अनाथों, अशक्तों, रोगियों और दुर्बलों का अलंकार-कर्म (शारीरिक सेवा) करते हुए रहते थे । तब नंदा पुष्करिणी में बहुत से सनाथ, अनाथ, पंथिक, राहगीर, काँवर ढोने वाले, मजदूर, घसियारे, पत्तों के भार वाले, लकड़हारे आदि आते थे । उनमें से कोई स्नान करते. कोई पानी पीते, कोई पानी भर ले जाते और कोई-कोई पसीने, मैल, आदि को मिटाकर परिश्रम, निद्रा, भूख और प्यास को वहाँ मिटाकर सुखपूर्वक रहते थे। राजगृह नगरी से घूमने के लिए निकले हुए भी बहुत से लोग उस पुष्करिणी में क्या करते थे ? वे लोग जल में रमरण करते थे, विविध प्रकार से स्नान करते थे, कदलीगृहों, लतागृहों, फूलों की विछावनों पर आनन्द करते थे । और अनेक पक्षिओं के समूह के मनोहर शब्दों से युक्त उस पुष्करिणी आदि में क्रीड़ा करते हुए विचरण करते थे। नंद की प्रशंसा तब उस नंदा पुष्करिणी में स्नान करते हुए, पानी पीते हुए और पानी भरकर ले जाते हुए बहुत से लोग आपस में इस प्रकार कहते थे-'देवानुप्रिय! नंद मणिकार सेठ धन्य है, कृतार्थ है, उसका जन्म और जीवन सफल है, जिसकी इस प्रकार की नंदा पुष्करिणी आदि है । जहाँ बहुत से लोग आसनों पर, शयनों पर बैटते हुए, संतुष्ट होते हुए, वार्ता करते हुए सुखपूर्वक घूमते हैं । अत: नंद मणिकार का जन्म सुलब्ध है और जीवन सफल है तब वह नंद मणिकार बहुत लोगों से यह प्रशंसा आदि सुनकर प्रसन्न और संतुष्ट हुआ। मेघ की धारा से आहत कदंब वृक्ष के समान उसके रोमकूप विकसित हो गये । वह सातायुक्त परमसुख का अनुभव करता हुआ रहने लगा। 000 150 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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