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________________ पाठ 32 : पाइय- अहिलेहाणि पाठ-परिचय : सम्राट अशोक ने धर्मप्रचार के लिए एवं शासन की आज्ञाएं प्रसारित करने के लिए अपने राज्य की सीमाओं में शिलाओं पर अपनी आज्ञाएं खुदवा दी थीं । उसकी ये आज्ञाएं तत्कालीन जन भाषा प्राकृत में थीं, किन्तु उनमें पालि एवं संस्कृत के भी कुछ प्रयोग सम्मिलित हो गये हैं । अशोक के ये शिलालेख प्राकृत गद्य के सबसे प्राचीन लिखित नमूने हैं 1 अशोक के प्रमुख शिलालेख 14 हैं । उनमें से प्रथम, द्वितीय एवं बारहवां शिलालेख यहाँ प्रस्तुत है । इनमें जीवदया, मांसभक्षण- निषेध, चिकित्सासेवा, वृक्षारोपण, धर्म-समन्वय एवं दान आदि के कार्यों पर प्रकाश डाला गया है । १. जीवदया : मंसभक्खण-नि सेहो इयं धंमलिपी देवानं प्रियेन प्रियदसिना राम्रा लेखापिता । इध न किं चि जीवं प्रारमित्वा प्रजू हितव्यं । न च समाजो कतव्यो । 1. 2. 3, 4. बहुकं हि दोसं समाजम्हि पसति देवानंप्रियो प्रियद्रसि राजा । 5. अस्ति पितु एकचा समाजा साधुमता देवानंप्रियस प्रियदसिनो राम्रो । 6. पुरा महानसम्हि देवानं प्रियदसनो राम्रो अनुदिवस बहूनि प्रारण सत सहखानि प्रारभिसु सुपाथाय । 7. से अज यदा श्रयं धमलिपी लिखिता ती एव प्राणा श्रारभरे सूपाथाय द्वौ मोराएको मगो, सो पि मगो न घुवो । 8. एते पित्री प्रारणा पछा न प्रारभिसरे । प्राकृत ग्रह-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 119 www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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