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________________ (४). प्रमुख सुणी वंदन श्रावे, अंतरंग राणी गहूली सावे॥ उत्तम गुरुपद पद्म वधावे तो॥ गौ ॥॥ इति ॥ ॥अथ गहूंली एंशीमी ॥ जुमखडानी देशी।। • ॥ ज्ञानदीवाकर शोजता, श्रुतसागर मुनिराज ॥ सुहंकर साधु जी॥मूकी काम विडंबना, कूखी संबल साज ॥सुहंकर साधु जी ॥१॥ नहिं ममता सम ताधरा, शांत सुदंत महंत ॥ सु॥ षटपद वृत्ति आ हारता, देश काल मतिमंत ॥ सुणा॥ पंच महाव्रत नावना, जावंता पचवीश ॥ सु०॥ पणवीश चित्त न धारता, अशुज नावन निश दीस ॥सु॥३॥ शिव नारं। रंजन नणं।, पहत्यो साधुनो वेश ॥सु० ॥ ते आगल मृगलोचना, करती विनय विशेष ॥ सु०॥ ॥४॥क्रोधादिक चल जीतवा, वरवा चार अनंत॥ सु०॥ स्वस्तिक पूरी वधावती, सशुरु चरण नमंत ॥ सु०॥५॥ गावे सोहागण गढूअली, धरती हर्ष अमंद ॥ सु०॥ श्रीशुजवीर वचन सुणी, पामे पद महानंद ॥ सु॥६॥ इति ॥ ७ ॥ ॥अथ गहूंली एकाशीमी॥ .. ॥ अने हारे सरसतीने चरणे नमी रे, वांउं गुरुना पाय ॥ अलिय विघन सवि टले रे, माणु एक पसा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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