SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३) ॥ सा० ॥ देखी सकल गुणखाण रे ॥ स० ॥ सा ॥ ६ ॥ विशाल सागर कहे बंदीयें ॥ सा० ॥ एह वा मुनि नित्यमेव रे ॥ स० ॥ आतम मंगल अनु जवे ॥ सा० ॥ तेहिज नित्य नित्य मेव रे || स० ॥ सा० ॥ ७ ॥ इति ॥ ७८ ॥ ॥ अथ गहूंली जगण्याएंशी मी ॥ ॥ हस्तियाम वनखंग मकार, राजगृही नालिंदा बार, श्राव्या इंद्रभूति गणधार तो । गौतम गुरु वं दवा जयें | वंदना करीयें ने शिवसुख वरीयें तो ॥ गौतम गुरु० ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ उदक पेढाल मुनी सर दोय, पार्श्वनाथ संतानीया सोय, पूढे प्रश्न ए एणीपरें जोय तो ॥ गौ० ॥ २ ॥ श्रावकने अणुव्रत उच्चरावे, मुनिवर देशश्री विरति करावे, स्थावर अनुमति मुनिने थावे तो ॥ गौ० ॥ ३ ॥ कहे गौतम सुणो मुनिवर वात, शेवपुत्र षटनो दृष्टांत, नृप अ न्यायथी मारण जात तो || गौ० ॥ ४ ॥ तास पिता करे विनति राय, व कुलनो उच्छेद ते थाय, पंच पुत्रने मूको ताय तो ॥ गौ० ॥ ५ ॥ इम विनति करता तस पे, पुत्र एक तस हर्ष ते व्यापे ॥ मार एनी नहिं अनुमति या तो ॥ गौ० ॥ ६ ॥ राय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy