SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७०) । अ०स०॥ जलधरनी परें गाजता, करता नवि जन सेण हो ॥ अ॥स॥वी० ॥४॥ सायं ग उपांगनी देशना, वरसत अमृतधार हो॥०॥ स० ॥ श्रोता सर्वनां दील ठरे, संयमशं धरे प्यार हो ॥ अ० ॥ स ।। वी० ॥५॥ स॥ शुक्ल शणगार सजी करी, मोतीयडे जरी थाल हो ॥०॥ सम्॥ श्रका पीउनी उपरें, पूरें गईली विशाल हो॥०॥ स० ॥ वी० ॥६॥स ॥ सौजाग्य उदयसूरि पाट ना, धारक गुरु गुणराज हो ॥ अ॥ स०॥ श्री विज यलक्ष्मी सूरिंद जी, दीपविजय कविराज हो ॥अण ॥स०॥ वी० ॥ ७॥इति ॥६६॥ ॥अथ गहूंली सडशहमी॥ ॥ रुडीने रढीयाली रे वाहाला तारी वांशली रे॥ए देशी ॥ सुकुत तरुनी वेल वधारवा रे, सींचती उपश म उदकनी धार, गुरुगुण हृदय धरती प्यार, मार्नु रंजानो अवतार ॥ सु०॥१॥ पुण्य पनोती रे साथे साहेलीयो रे, मली मली शोल सजी शणगार, कर धरी रजत रकेबी सार, कुंकुम घोली करी मनो हार ॥ सु० ॥२॥ अदत सारा रे उज्ज्वलता नख्या रे, पूरती खस्तिक मंगल सार, चुरती चिहुं गति क्रोध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy