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________________ (ए) ॥४॥ नय निदेप प्रमाणथी, साधुनो बंध सुरीतें रे ॥ तत्त्वातत्व विशेषणा, लहीयें परम प्रतीतें रे ॥ आ०॥५॥ तत्वारथ श्रझान जे, समकित कहे जि नराया रे ॥ नाषण रमण पणे लहे, नेद रहित मति पाया रे ॥ आ ॥६॥ स्वस्तिक पूजन नावना, कर ता नक्ति रसाल रे ॥ पुण्य महोदय पामीयें, केवल कछि रसाल रे ॥आ॥७॥इति ॥६५॥ ॥अथ गहूंली बाशमी॥ ॥प्रजुजी वीरजिणंदने वंदीये ॥ए देशी॥ ॥सजनी शासन नायक दिल धरी, गाशुं तपगड राया हो ॥ अलबेली हेली ॥ सजनी जाणीयें सोहम गणधरु, पटधर जगत गवाया हो ॥ अलबेली हेली ॥ सजनी वीर पटोधर वंदियें ॥१॥ए आंकणी ॥स जनी वसुधापीउने फरसता, विचरता गणधार हो ॥अ ॥ स ॥ त्रीश गुणझुं विराजता, जे नवि जनना आधार हो ॥०॥ स०॥वी०॥॥ सम्॥ तखतें शोहे गुरुराज जी, उदयो जिम जग नाण हो ॥ १० ॥ स०॥ निरखतां गुरुराजने, बूजे जाण अजाण हो ॥ अ॥स० ॥ वी०॥३॥ स ॥ मु खडं शोहे रे पूरण शशी, अणीयाला गुरु नेण हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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