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________________ (७) ली करे गुण गाय हो ॥ सह० ॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो ॥६॥ मनमोहन गुरु तिहां कणे ॥ सहि० ॥ देई देशना हितकार हो ॥ नाव धरीने जे सुणे ॥ सहि॥ ते लहे सुख श्रीकारहो ॥ सहज सोजागी गुरु, शिवसुखरागी गुरु, शुनमति जागी गुरु वांदवा ॥ सहियर मोरी, चालोने हर्ष उल्लास हो॥ ७॥ इति ॥३॥ ॥अथ गहूली चोशठमी॥ ॥ जगजीवन जमुना रे, जल नरवा द्यो ए देशी ॥ ॥ आतमरुचि गुणधारणी रे, मनोहारणी ॥ करे गहूबली तजी खेद रे॥ सुखकारणी ॥ नाम स्थापना अव्यथी रे ॥ मनोहारणी ॥ नावे मंगल चिहुंदरे ॥ सुखण॥१॥ जीव अजीव ने मिश्रथी रे॥ म०॥ एतो नाम मंगल त्रिहु नाम रे ॥ सु॥ आपे मंग ल ए सही रे॥ म०॥ कीजें नित नित शुन्न काम रे ॥ सु॥॥आगम नोआगम थकी रे ॥म ॥ ए तो अव्यमां होय विचार रे ॥ सुगा नावमांहे दोय ए वली रे ॥म० ॥ तेह नोआगम अधिकार रे ॥ सु॥ ॥३॥ नंदी दाखी सूत्रमा रे ॥म ॥ सही नाव मंगल होय तेहरे ॥ सु०॥ पंच नाण निर्विघ्नतां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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