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________________ (७६) री॥श्री शोहम गणधार हो ॥ आप स्वनावमा खे सता, सहियर मोरी ॥ धरता ध्यान उदार हो । सह ज सोजगी गुरु, शिवसुखरागी गुरु, शुजमति जाग। गुरु वांदवा ॥ सहियर मोरी, चालोने दर्ष नबास हो ॥१॥ बारे जावना जावतां, सहियर मोरी ॥ अनि त्यादिक गुणगेह हो । माहाव्रत पामीने वली ॥ स हि ॥ नावे पणवीश तेह हो ॥ सह ॥ शिव० ॥ शुन ॥ सहि ॥ चालो ॥२॥ संझादिक योगें करी ॥ सहि॥ सहस अढार जे थाय हो ॥ तेह ने शील कहीजियें ॥ सहि ॥ ते पाले निर्माय हो ॥ सह ॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो ॥३॥ समिति गुप्ति सूधी धरे ॥सहि ॥ चरण करण गुण धाम हो ॥ पडिलेहण श्रावश्यकादिकें । सहि ॥ अहोनिश रहे सावधान हो ।सह॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो ॥ ४ ॥ सदाचार एम पालतां ॥ सहिणा वर्ते श्रातमनाव हो ॥ नयरी राज गृही आविया ॥ सहि०॥ नवोदधि तारए नाव हो ॥ सह ॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो॥ ॥५॥ उदंत सुणीने आवियो । सहि ॥ वंदन श्रे णिकराय हो । साथे राणी चेलणा ॥ सहि०॥ गहू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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