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________________ (६३) विक प्रतिबोधता रे ॥ लो० ॥ बेनी प्रह उठी प्रणमें पाय, समिति पंच शोधता रे ॥ लोग ॥ ॥ बेनी को णिक जूपति नार के, गहूंली लावती रे॥लो॥ बेनी स्वस्तिक पूरति खास के, मोतीये वधावती रे ॥ लोण ॥ ए॥ बेनी कामिनी कोकिलवाणि के, गुरुगुण गाव तीरे ॥ लो॥ बेनी सौजाग्य लक्ष्मी सुखखाण के, सदा सुख पावती र ॥लो० ॥ बने। गुरु गछपात-गुरु राज के, गौतम जाणीये रे ॥ लो ॥१०॥इति ॥ ॥अथ गहूली बावनमी॥ ॥ गरबानी देशी ॥बेनी अपापा नयरी उद्यान के, वा जां वागियां रे लोल ॥ बेनी देववाजिंत्र अनेक के, घ नाघन गाजीयां रे लोल॥१॥बेनी अनूत्यादि अग्यार के, ब्राह्मण दीपता रे लोल।बेनी वेदवादना जाण के, बहु वाद कींपता रे लोल ॥२॥बेनी संशय डे अति गूढ, मिथ्यामति पूरिया रे लोल ॥ बेनी श्रीजिन थ मृत वाणी के, सुणि सुख पामीया रे लोल ॥३॥ बेनी बांकी सकल जंजाल के, हवा व्रत जाविया रे लोल ॥ बेनी इंश सजानो थाल, केवा जश श्रावियारे खोल ॥४॥बेनी अरिहा ए श्राचार के, तीरथ स्थापिया रे लोल ॥ बेनी लावो गहूंसी गेल के, हरखें वधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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