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________________ ( ६२ ) वियण कर जोड, करी एक वीनति रे लोल || बेनी चंद्रोदयरत्नसूरिंदने, नित्य नित्य वंदती रे लोल ॥७॥ ॥ अथ गहूंली एकावनमी ॥ गरबानी देशी मां ॥ ॥ बेनी गुरु पति गुरुराज के, गौतम जाणी यें रे ॥ लो० ॥ बेनी मुनि मंगल महाराज के, मनघर श्र पीयेंरे ॥ लो० ॥ १ ॥ बेनी शासनना सुलतान, व जीर श्री वीरना रे || लो || बेनी लब्धिवंत निधान, के श्री गुण हीरनारे ॥ लो० ॥ २ ॥ बेनी मगधदेश मकार के, गोवरगाम बे रे ॥ लो० ॥ बेनी वसुभूति पृथिवी नार के, माता नाम बे रे ॥ लो० ॥ ३ ॥ बेनी सोवनवान समान, शरीर सकोमलां रे ॥ लो० ॥ बे नी लोचन युगल प्रधान के, कर क्रम कोमला रे ॥ लो० ॥ ४ ॥ बेनी ज्ञान रयण जंकार, सिद्धांतना सा गरु रे || लो० ॥ बेनी माहाव्रत जस मनोहार, महि मा गुणरू रे ॥ लो० ॥ ५ ॥ बेनी नहीं प्रतिबंध विहार, नहीं ईहा कशी रे ॥ लो० ॥ बेनी सकल जंतु हितकार, दया जस मन वसी रे ॥ लो० ॥ ६ ॥ बेनी नयरी चंपा उपवन्न के, पूज्य पधारीया रे || लो० ॥ बेनी किसुत धनधन्य के, वंदन पधारि या रे ॥ लो० ॥ ७ ॥ बेनी देशना दीये गुरु राय, ज ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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