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________________ (५०) नावे सहगुरु जेटवा, जीरे सहु मसीने साथ मon जीरे उलटें थाव्या श्रप्या सहि, जीरे सोवनथाली हाथ ॥ म० ॥४॥ जीरे हीरे जडित कुंकावटी, जीरे मांहे कपूर बरास ॥म०॥ जीरे मांहे मृगमद महमहे, जीरे केसर चंदन खास ॥ म० ॥५॥ जीरे चतुरा चाली चमकती, जीरे उमकेशुं उवती पाय ॥ म ॥ जीरे चरणे नेउर रणकणे, जीरे मा निनी मानें गाय ॥ म॥६॥ जीरे, पाये वींबूथा वाजणां, जीरे कांजरना रमजोल ॥म ॥ जीरे प्रे मेशुं गहूअली करी, जीरें नवखंडी रंगरोल ॥म०॥ ॥७॥ जीरे पूरी सोहागण साथीयो, जीरे मोतीडे मनरंग ॥म॥ जीरे चुंगल नेरी नणहणे, जीरे वाजे ढोल मृदंग ॥ म ॥ ॥ जीरे त्रण खमा समण देश्ने, जीरे वंदे सहु नर नार ॥ म ॥ जीरे संघ मस्यो सहु सामटो, जीरे उत्सवनो नहिं पार ॥ म ॥ ए॥ जीरे सहगुरु दीये तिहां देशना, जीरे वांची सूत्र विचार ॥मजीरे जलधरनी पेरें गाजता, जीरे वरसता अमृतधार ॥ म ॥ १० ॥ जीरे मीठी रे मीठी मीठडी, जीरे मीठी साकर जाख. ॥म० ॥ जीरे तेहथकी पण मीठडी, जीरे. मीठी म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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