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________________ (५७) जीरे ठंड्या ने मोह संसारना, जीरे व्रतधारी संयम धार ।। वधा० ॥ जीरे चरण करणनी सित्तरी, जीरे सेवा लहे जव तार ॥ वधा ॥४॥ जीरे तपीया डे केश मुनिराज जी, जीरे त्यागी ने केश मुनिराज ॥ वधा ॥ जीरे मुनि गुणगणे वरतता, जीरे शिववधू वरवाने काज । वधा॥५॥ जीरे नृप परदेशी रे हरखियो, जीरे पहोता ने वंदन काज ॥ वधा ॥ जीरे गुरु उपकार संजारतो, जीरे पूज्य डे गरीबनि वाज ॥ वधा० ॥६॥जीरे नृपपटराणी गढूंथली, जीरे पूरे पूज्यहजूर । वधा ॥ जीरे दीपविजय कविरा जने, जीरे वंदो उगमते सूर ॥ वधा॥७॥ इति॥धन॥ ॥अथ गहूलागणपञ्चासमादेशी नपरन। गहलान। ॥जीरे सूर उगमती गहूंअली, जीरे गुरु श्रागल श्री कार ॥ मनोहर गहूंअली ॥ जीरे सहीरे समाणी सं चरी, जीरे पूठे बहु परिवार ॥ म॥१॥जीरे चालो रे सहीयो उतावली, जीरे हैयडे हर्ष न माय॥म०॥ जीरे समकेतने अजुवालवा, जीरे वंदीये श्री गुरुरा य ॥म ॥२॥ जीरे सरखा सरखी सुंदरी, जीर टोलेमली गह घाट ॥म०॥ जीरे थाना शालु उढ एपी, जीरे उपर नवरंग घाट ॥ म ॥ ३॥ जीरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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