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________________ (५५) जर वागे, गहूसी करतां अनुजव जागे ॥ सुण ॥५॥ कुंकावटीयें केशर लेती, करी स्वस्तिक पातकडां घो ती, वधावती उज्ज्वल मोती, वलती खलती गुरुमुख जोती ॥ सुण ॥६॥ कलकंठवती मधुरा गावे, गुण बंती तिहां गहूंली गावे, आ जव सौजाग्यपणुं पावे, शुनवीर वचन हैयडे जावे ॥ सुण ॥७॥इति ॥४५॥ ॥ अथ श्रगीयार गणधरनी गहूंली तालीशमी। ॥जनक रायने रे मांगवे ॥ ए देशी ॥ .. ॥पहेलो गोयम गणधरु, अनूति जेहनुं नाम ॥ अग्निनूति वखाणीयें, बीजो प्रजुगुण धाम ॥ गणधर शोना हुं शी कहुं । ए आंकणी ॥१॥ वायुनूति त्री जा वजीर , गौतमगोत्र जगवंत ॥ चोथा व्यक्तजी जाणीयें, कीधा जवना रे अंत ॥ गण॥२॥ स्वामी सुधर्मा डे पांचमा, मंमित बहा गणधार ॥ मोरिय पुत्र डे सातमा, सहु ए जगना आधार ॥गण॥३॥ अकंपितजीले रे बाग्मा, अचलजी नवमा रे जाण ॥ मेतारय जग पूज्य जी, गणपति दशमो वखाण ॥ गण ॥४॥ स्वामी प्रजासजी वदीयें, एकादश मा गणधार ॥ गणधर गबपति गणपति, तीरथ ना अवतार, द्वादशांगी धरनार, सहु मुनिना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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