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________________ (५४) रिजन कीजे उंची एम साचवी, शासन जक्ति विशा ल दे, अलबेली देसी ॥ सुरिजन प्रजुनी वाणी मृत समी अबे, रंगें सुणीयें रसाल दे, अलबेली हेली ॥ सुरि० ॥ शा० ॥ ७ ॥ इति ॥ ४४ ॥ पण ॥ अथ गहूंली पीस्ताली शमी ॥ ॥ सुण गोवालणी, गोर सडावाली रे उभी रहेने ए देशी ॥ ॥ सु साहेली, जंगम तीरथ जोवा उनी रहेने ॥ मुनि मुख जोतां, मन जलसे तन विकसे आपण बे ने ॥ ए की बे ॥ थावर तीरथ दुर्गति वारे, घर मेली जइयें ज्यारे, विधियोगें ध्यान धरे त्यारे, संसार समुद्र की तारे ॥ सु० ॥ १ ॥ जंगम मुनि मारगमां फरता, संयम आचरणा श्राचरता, जगजीव उपर करुणा धरता, पुण्यशाली घर पावन करता ॥ ॥ सु० ॥ २ ॥ अनाचीरण बावन परिहरता, बोले दशवैकालिक करता गणि पेटी बहु श्रुतनी धरता, मुखचंद्रथ की अमृत करता ॥ सु० ॥ ३ ॥ वर ज्ञान ध्यान हय गय वरिया, तप जप चरणादिक परिकि रिया, विरति पटराणीशुं वरीया, मुनिराज सवाइ केशरीया ॥ सु० ॥ ४ ॥ सुविहित गीतारथ गुरु वागें, विधियोगें वंदे गुणरागें, कर कंकण पर कां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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