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________________ (४६) श्री शुजवीरनी देशना ॥ ० ॥ सुणतां मले शिवसा थ रे ॥ ज० ॥ ॥ ५ ॥ इति ॥ ३६ ॥ ॥ अथ गहूंली साडत्री समी ॥ ॥ केसरिया चडो वरघोडे ॥ ए देशी ॥ ॥ राजगृही वनखं विचाल, श्राव्या वीर जिणंद दयाल, वंदे श्रेणिकनामें भूपाल तो ॥ वीर जगत गुरु वंदना करियें | वंदना करियें ने जवजल तरियें तो ॥ वी० ॥ १ ॥ कुष्टि कुरूप एक देव ते वार, मरण जीवन जन चार विचार, श्रेणिकरायने हर्ष पार तो ॥ वी० ॥ २ ॥ कोसंबी नगरीनो वासी, सेमूक बा ह्मण धननो आशी, पुत्र कुटुंबने रोगें वासी तो ॥ वी० ॥ ३ ॥ वे राजगृही दुवार, मरण नही जल तर अपार, जलमां मेडको अवतार तो ॥ वी० ॥ ४ ॥ वारी हारी नारी वचनथी, पूरवजव लहि चा ल्यो वनथी, मुज वंदन हरख्यो तन मनथी तो ॥ ॥ वी० ॥ ५ ॥ तुऊ घोटक पद हलियो जाम, लहि सुर जव व्यो एणें ठाम, श्रेणिक देखे तुक परि णाम तो ॥ वी० ॥ ६ ॥ मोक्षगमन कहो मुजने सार, दर्दूर रंक तो अधिकार, उपदेशमाला ग्रंथ मो कार तो ॥ वी० ॥ ७ ॥ राणी चेला हर्ष न मात्रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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