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________________ (३७) वाणी चित्र अनुसरता, कुमति तथा मद गावंता, आव्या राजगृही फरता ॥ ० ॥ ४ ॥ कोणिक नूप तिनी राणी, जामंगलमां ऊजाणी, धवल मंगल करे गुणखाणी ॥ ० ॥ ५ ॥ अनुभव ज्ञाने चित्त ठरशे, सद्गुरु सदा वरसे, जविजलधर चातक वरसे अंगें ॥ ० ॥ ६ ॥ एी परें जे गुरु गुण गावे, संवरजावें चित्त लावे, महींद्रसिंह सूरि सुख पावे ॥ ० ॥ ७ ॥ इति ॥ २५ ॥ ॥ अथ गहूंली त्रीशमी ॥ ॥ सखि राजगृही उद्यानमां, उतरिया श्री जिनराज ॥ वारी जाऊं वीरनें ॥ सखि मननो ते सांसो उपशमे, जाणी यें मलीयो बे शिवपुरीनो साज ॥ वा० ॥ १ ॥ सखि देवबंदो ते देवें रच्यो, तिहां बेवा बे त्रिभुवन राय ॥ वा० ॥ सखि बारे पर्षदा तिहां मली, जीरे सती सुवाने जाय ॥ चा० ॥ २ ॥ राणी चेला ते लावे गाली, राजा श्रेणिकनी घरनार ॥ वा० ॥ जीरे मुक्ता ते फलनो साथियो, जीरे उपर श्रीफल सार || वा ॥ ३ ॥ सखि नवणीनी गल गहूंली, जीरे विच विच नागरवेल ॥ वा० ॥ जीरे दर जलुं रे दरिया तणुं, जीरे जेमां वे जारी रेल | वा० ॥ • Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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