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________________ (३०) ॥३॥ ते गुणदरिया कौतुक नरिया, कंपिलपुरमा हे संचरिया, नित्य नित्य सहु घर वसती वरिया, स दुको जाणे रे, अम घर उचव थाय ॥ घर घर होशे रे, कौतुक जोवा ते जाय ॥ देव नवांतर रे, अंबड मुक्ति वराय ॥०॥४॥ सांजली हरडे हर्ष नराणी, बहुत साहेलीनी उकुराणी,नामें सुना धारणी राणी, चीर पटोली रे, पहेरी निकट ते जाय ॥ धुंघट खो ली रे, अंजलि शीश नमाय ॥ केशर घोली रे, सा थिये मोती पूराय ॥ १०॥५॥ चतुरा चन्मुख चि त्त मिलावे, मुक्ताफल दोय हाय धरावे, श्रीशुनवीर नां चरण वधावे, मंगल गावे रे, रंना अपबर नार ॥ जगतनो दीवो रे, विश्वनर जयकार ॥ बहु चिरंजी वो रे, त्रिशला मात महार ॥ अ॥६॥ इति ॥ ॥अथ गहूलि उगणत्रीशमी॥ अहो मुनि संयममा रमता ॥ए आंकणी ॥ वीरनी आणा शिरधरता, पवयणमायें सुविचरंता, सोहमपा ट दीपावंता ॥ अ० ॥१॥श्रीजिन आणा मति रागी, अव्य जव परिग्रह त्यागी, शिवरमणीशुं लय लागी ॥०॥ बत्रीश बत्रीशी पूरा, रागादिकथी र हे पूरा, शांत मुलामांहे ससनूरा ॥ अ० ॥३॥ वी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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