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________________ (२) ख्या रे, प्रभु वरसे बे त्रिभुवन नाथ ॥ वीर० ॥ १ ॥ हरि समवसरणनी शोजा शी कहुं रे, जिहां निवर चौद हजार ॥ महासती चंदनबाला मावडी. रे, सहु साधवी बत्रीश हजार || वीर० ॥ २ ॥ श्रने दांरे गणधर पूज्य अग्यार बेरे, ते मां गौतम स्वामी वजीर ॥ त्रणरों चउद पूर्वी दीपता रे, श्रुत केवली जगवड वीर ॥ वीर० ॥ ३ ॥ ने हांरे सातशे केवली जगत प्रजाकरु रे, तेतो पाम्या बे जवतीर ॥ पांचशें विपुलमति परिवार बे रे, सहु परिकर बे प्रभुवीर ॥ वीर० ॥ ४ ॥ ने हारे आणंद श्रावक समकित उ श्चरे रे, वली द्वादश व्रत जयकार ।। एक लाख जंग पशाव हजारमां रे, मुख्य श्रावक दृढ व्रत धार ॥ वीर० ॥ ५ ॥ ने हांरे सखी जयणे उजमाली बालि का रे, आवी वंदे प्रभुजीना पाय || मादामंगल प्रभु जीनी खागलें रे, पूरे च मंगल सुखदाय || वीरप ॥ ६ ॥ ने हारे सातमुं श्रंग उपासक सुत्रमां रे, प्रभु दीप विजय कविराज ॥ श्राणंद सरिखा दश श्रा वक का रे, लेहशे एक जवें शिवपुर राज || वीर० ॥ ॥ ७ ॥ इति ॥ २० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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