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________________ (२०) रुगुण मोती जावि ॥ स०॥५॥ गुणि मन सोवन फूलडां ॥ गुण ॥ शुज रति कुंकुम घोल ॥ स॥श्रका रकेबी कर रही ।।गु०॥ दर्शन नूमि अमोल ॥ स० ॥३॥ श्रनुजव श्रीफल रूपहुं ॥ गु० ॥ उत्तर गुण बहु शाल ॥स० ॥ पंचाचार करो खूबणां ॥ गुण ॥ तिलक विवेक विशाल ।स॥४॥इणिपरें अव्य ने लावधी ॥ गुण ॥ मंगल आठ कराय ॥स ॥ रा णीकोणिक रायनी ॥7॥ गहंसी गुरुगण गाय ॥स० ॥५॥ कंचनकमल विराजता ॥गुण ॥ दिये देशना सार । स०॥ चरण करण रयणे जस्या ॥गु०॥ प्रजु पंचम गणधार ॥ स०॥६॥ पंच समिति समि ता थका ॥ गु०॥ नव कल्पी करय विहार ॥ स॥ चविह संघे परिवस्या ॥गुण ॥ जीत्या विषय वि कार ।। स० ॥७॥ नाव धरी नमुं तेहना ।। गुण ॥ च रणयुगल अरविंद ॥स ॥ वीर वाणी संजलावतां । गु० ॥ मटुकनाव श्रमंद ॥स० ॥७॥ ॥अथ गहली वीशमी॥ ॥थने हारे वालोजी वाये जे वांसली रे॥ए देशी। ॥अने हारे वीरजी दीये ठे देशना रे ॥ चालो चा लो सहीयरनो साथ ।। सुरवर कोडा कोडि तिहां म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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