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________________ (२६) जीरे वरण गंध रस फरस रे ॥ गुण ॥ वा० ॥ ५॥ जीरे लोक सकलमय श्म नस्यो, जीरे कहे गौतम धन्य तुम ज्ञान रे ॥ गुण ॥ वा ॥ जीरे एवा गुरुने बागल गहूंअली, जीरे फतेशिखर अमृतशिव निश्रे णी रे ॥ गु॥वा ॥६॥ इति ॥ १६ ।। ॥अथ गहूंली सत्तरमी॥ · राग धोल ॥बेनी संचरतां रे संसारमारे, बेनी सह गुरु धर्मसंजोग ॥ वधावो गढूंअली रे॥बेनी सदहणा जिनशासननी रे, बेनी पूरण पुण्य संजोग ॥ वण॥२॥ बेनी सम संतोष साडी बनी रे, बेनी नवब्रह्म नवरंग घाट ॥वा बेनी तप जप चोखा ऊजला रे,बेनी सत्यत्र त विनय सुपाट ॥ वणार ॥ बेनी समकित सोवनथा समां रे, बेनी कनक कचोले चंग ॥ व०॥ बेनी संवर करो शुज साथीयोरे, बेनी आणातिलक अनंग ॥ ॥व॥३॥ बेनी समिति गुप्ति श्रीफल धरो रे, बे नी अनुजव कुंकुम घोल ॥व० ॥ बेनी-नवतत्व हर ये धरो रे, बेनी चरचो चंदन रंग रोल ॥ व॥४॥ बेनीजवजल जेहमां नेदीयें रे, बेनी विवेक वधा वो शाल ॥२०॥ बेनी वीर कहे जिन शासने रे, बेनी रहेतां मंगलमाल ॥व०॥५॥ इति ॥१७॥ ... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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