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________________ गहूंखी गाशे, एम कहे केवल नाणी ॥ सर्वार्थ सिझत णां सुख विलशे, खेशे मुक्ति पट्टराणी॥ज०॥११॥१५॥ ॥अथ गहूंसी शोलमी ॥ ॥जीरे जिनवर वचन सोहंकरु ॥ जीरे थबिचल शासन वीर रे ।। गुणवंता गिरुया वाणी मीजी रे माहावीरतणी ॥ जीरे पर्षदा बार मली तिहां, जीरे अरथ प्रकाशो गुणगंजीर रे ॥ गुणवंता गौत म, प्रश्न पूछे रे माहावीर धागलें ॥१॥ जीरे नि गोद स्वरूप मुजने कहो, जीरे केम ए जीवविचार रे ॥ गुण ॥ वा ॥ जीरे मधुर ध्यनियें जगगुरु कहे, जीरे करवा जविक उपकार रे ॥गु० ॥ वा ॥२॥ जीरे राजचउद लोक जाणिये, जीरे असंख्याता जोजन कोडाकोडी रे ।। गु०॥वा ॥ जीरे जोजन ए क एमां लीजीयें, जीरे लीजिये एक एकनो अंश रे ॥ गुण ॥ वा ॥३॥ जीरे एक निगोदें जीव थनंत डे, जीरे पुजल परमाणुथा अनंत रे ॥ गुरु ॥ वा ॥ जीरे एकप्रदेशे जाणीयें, जीरे प्रदेशे वर्गणा अनंत रे॥गु० ॥वा० ॥४॥ जीरे एक असंख्य गोलासं ख्य , जीरे निगोद असंख्य गोला शेष रे ॥ गु० ॥ वा ॥ जीरे परमाणुथा प्रत्ये गुण अनंत बे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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