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________________ प्रथमाष्टक. अर्थ-श्राप वर्गने अंते रहेवा, तथा कवर्गनी पेहेलांना, उपर रेफवासा, तथा अनुस्वारथी विजूषित थएखा, एवा "अर्ह" नामना उत्कृष्ट बीजतत्वने, जे खरी रीते जाणे , ते माणस संसारनां बंधननो बेद करीने परम गतिमां (मोदमा) जाय . इत्यादि स्वरूपवालो जे ध्यानविधि, ते नरादिकनां विकुट्टनने सहन करनारो केमके, घणां कालसुधि ते ध्यानने धरतां थकां पण उत्तर कालमां ते रागादिको एमना एमज रहे ; पण " रागादिको आ लोक अने परलोकमां पण दुःखदायक ," एवं चिंतवनारने उत्तर कालमां ते सूक्ष्म थया थका सर्वथा प्रकारे पण नाश पामे माटे राग आदिकोने दूर करवानुं जे ध्यान, ते श्रेष्ट विधि के अने तेथीज उत्तम (योगी) बीजां ध्यानोने तजीने, ते प्रकारनी (रागादिकनो नाशकरनारी) ध्यानविधि आचरे . कडं बे के, सघली क्रियाउँमा जेटला जेटला राग घेष वर्ते , तेटला तेटला आ लोक अने परलोकमां श्रहित करनारा . __ हवे जेमां उपर कहेला विधि अने प्रतिषेधनां उपायनूत एवी समिति अने गुप्ति संबंधि क्रिया देखाडाय , ते शास्त्रने "जेद शुध” शास्त्र जाणवू, कह्यु ने के, ___ "श्रा अमुक क्रियाथी ते समिति अने गुप्तिने बाध आवतो नथी, अने ते नियमपूर्वक पाली शकाय डे" एवी रीतनां वचनथी जे शास्त्र शुद्ध होय, तेने "बेदशुद्ध" शास्त्र जाणवू. अने जे शास्त्रमा दिगंबरीउनां शास्त्रनी पेठे प्राणीउनी रक्षामां, शुज ध्यान करवामां, तथा शुद्ध पिंड ग्रहण करवामां साधनरूप एवां वस्त्र अने पात्र आदिक उपकरणो (राखवानो) प्रतिषेध करेलो होय, ते शास्त्रने अशुद्ध शास्त्र जाणवू; अथवा देवनां श्राराधनमाटे साधू ने गायन करवा आदिकनो जे शास्त्रमा उपदेश करेलो होय, तेने पण अशुद्ध शास्त्र जाणवू. कह्यु के, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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