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________________ श्रीहरिलजसूरिकृतान्यष्टकानि । वली अहीं वादी शंका करे के, सर्वज्ञ संजवी शकतोज नथी, केम के, शशलाना शिंगडांनी पेठे सत्तासाधक प्रमाणथी ते वात ग्राह्य थ शकती नथी, केम के आ " सर्वज्ञ"जे, एवं ते कासना ( सर्वज्ञ जे वखते विचरता हता ते वखतना) विधानो पण ते सर्वाने जाणी शकाय, एवा ज्ञानना अनावथी तेउने जाणवाने शक्तिवान थता नथी. ___ हवे ते वादीने कहे जे के, एम नहीं; केम के, सर्वज्ञपणुं सिद्ध करवाने सत्तासाधक प्रमाणनुं जे तें अग्राह्यपणुं कडं, ते वात असिद्ध अर्थात सर्वज्ञपणुं सिद्ध करवामाटे घणां प्रमाणो . ते नीचे प्रमाणे. __ जे पदार्थो थोडाथोडा नाशवंत होय, तेउनो समूलगो नाश थवानो पण संजव केम के, जेम सामग्री विशेषथी वस्त्र रत्ननां मेल आदिक पदार्थो अपचय (दय) धर्मवाला , तेम ज्ञानावरणादिक पण अपचय धर्मवाला बे; माटे तेउनो सर्वथा दय थवो पण संजवे के एवी रीते ज्यारे तेऊनो सर्वथा क्य थाय , त्यारे सर्वज्ञपणादिकजावो पण प्रगटी निकले के अने ते ज्ञानावरणादिकोने अपचयधर्मपणुं कई असिफ नथी, केम के पोताना संतानमां पण ज्ञान आदिक, थोडाघणापणुं देखायज . कधु ने के, दोषावरणयोर्हानि, निःशेषास्त्यतिशायनात् ॥ कचिद्यथाखहेतुभ्यो, बहिरंतर्मलक्षयः ॥ १॥ अर्थ-जेम पोतानां हेतुथी (जपायोथी) बहारनो अने अंतरनो मेल नाश पामे , तेम अतिशयपणाथी दोष अने आवरणनी हानि सघली पण संजवे बे. __ वली इजियोने गोचर न थ शके एवा बंध, मोक्ष अने परलोक आदिक लावो कोश्ने प्रत्यक्ष पण होय , केम के, अग्नि श्रादिकनी पेठे ते वात अनुमानयी सिद्ध थाय बे. कां.बे के, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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