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________________ प्रथमाष्टक. अने बीजा देवोनुं तो रागादिकपणुं, अनुचित रूप, तथा अनुचित चरित्र तो (लोकोमां) प्रख्यातज बे. ते कहे . ब्रह्मा लूनशिरा हरिदृशिसरुक व्यालुप्तशिश्नो हरः सूर्योप्युल्लिखितोऽनलोप्यखिलभुक्सोमाकलंकांकित: वर्नाथोऽपि विसंस्थुलःखलुवपुःसंस्थैरुपस्थैः कृतः सन्मार्गस्खलनाद्भवन्तिविपदःप्रायःप्रभूणामपि ॥१॥ अर्थ-उत्तम मार्गथी भ्रष्ट अवाश्री ब्रह्मा बेदाएला मस्तकवालो, विष्णु आंखमां रोगवालो, महादेव बेदाएला लिंगवालो, सूर्य उखडेली चांबडीवालो, अग्नि सर्व लदाण करनारो, चं कलंकवालो, तथा इंज हजार योनिउँवालो थयो; माटे एवी रीते पुराचरणथी समर्थाने पण प्रायें करीने आपदा थाय ने वली, यद्ब्रह्मा चतुराननः समभवद्देवो हरिमनः शकोगुह्यसहस्रसंकटतनुर्यच्च क्षयी चंद्रमाः यजिहादलनामवापुरहयो राहुः शिरोमात्रतां तृष्णे देवि विडंबनेय मखिला लोकस्य रेत्वत्कृता ॥२॥ अर्थ-ब्रह्मा चार मुखवालो थयो, विष्णुदेव वामनरूप अयो, इंश एक हजार योनिवालां शरीरवालो भयो, नागो चीराएली जीजवाला श्रया, राहुर्नु फक्त माधुंज रघु; माटे हे तृष्णादेवी ! आ सघली लोकोनी विडंबना तारी करेली . __हवे ते ब्रह्मानुं मस्तक शी रीते बेदाणुं ? ते कहे जे. एक समये तेंत्रीस क्रोड देवता एका श्रया, तथा ते मांहोंमांहें (पोतपोताना ) माबापोनुं वर्णन करवा लाग्या; त्यारे तेउए कह्यु के, अहो !!! एक महादेवनां माबापो जणातां नथी; ते सांजली एके कह्यु के, महादेवने माबाप बेज नहीं; ते वचन सांजलीने ब्रह्माए मत्सर लावीने पोताना पांचमा गईन आकारवालां मुखथी कडं के, सघली बाबतोनो जाणनार हजु हुँ जीवतो बेगे , बतां एम कोण कही शके. के, महादेवना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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