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________________ नाषान्तर सहित. ए बीजानो विरह खमी शकतां नहीं. पाप हमकायुं बे, चोरी चार महीना अने बीनालु बेवट ब महीना क्वचित ढांक्युं रहे, पण अंते उघाडं पड्या विना रहेतुं नथी, तेमज आ दीर्घराजा अने चूलणी राणीना अयोग्य आचरणनी वात सघले विस्तरी. त्रण मित्र राजाए पण आ वात सांजली तेथी घणा दीलगीर थया. परंतु दीर्घराजानो पग ए राज्यमा कामी गयेलो अने कुमार बालक होवाथी नीरुपाये ए पुष्टने त्यांथी खसेडी शक्या नही. दीर्घराजा निशंकपणे चूलणीराणीनी साथे आडो व्यवहार चलावतो राज्यनो स्वतंत्र मालीक होय तेम धणी धोरी थई सुख जोगववा लाग्यो. वरधनु नामे ए राज्यनो असली गरढो प्रधान हतो तेणे पण दीर्घना उष्टकर्मनी वात जाणी तेथी तेणे पोताना धनु नामना पुत्रने ए हकीकतथी वाकेफ करी कडं के, तहारा दीलोजान दोस्त ब्रह्मदत्त कुमारने दीर्घनी कुचेष्टानी सघली बीनाथी माहितगार. करजे. धनुए पितानी आज्ञा प्रमाणे ब्रह्मदत्तने सघलो नेद कह्यो तेथी ते रोषातुर थयो. एकदा प्रस्तावे एक हंसीने वायस साथे जोई ते बन्नेने दरबार कचेरीमा लई जई ब्रह्मदत्त कुमारे कयु के, जुट ! श्रा उत्तम हंसी मध्यम वायस साथे संजोग करावे ले तेनुंफल. एम कही दीर्घराजाना देखता वायसने हएयो, अने जणाव्युं के महारा राज्यमां एवो जे अन्याय (श्रयुक्तकार्य ) करशे तेने हुँ वायसनी पेठे हणीश. श्रावा शब्दो सांजली दीर्घ बीहीन्यो अने ते हकीकत तेणे चूलणीने जणावी. चूलणी क्रोधायमान थई मनमा विचार करवा लागी के, ए पुत्र आपणे कामनो नहीं. दीर्घ कयु के, हवे श्रापणे एटलेथी सर्यु, केमके तहारा पुत्रे आपणी वात जाणी, माटे कोईक दीवस ते तने अगर मने, के आपण बन्नेने हणशे. चूलणीए कडं के, खामी ! ए बालकनी वात मननां न लावीये ? एना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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