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________________ ५४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग हवे मनुष्य जव दश दृष्टांते दोहिलो वे ते संबंधे कहेलो श्लोक. ॥ चुल्लग ( १ ) पासंग (२) धन्ने ( ३ ), जुये ( ४ रयणे (५) सुमीणे ( ६ ) चक्के (१) ॥ चम्म ( ८ ) जुगे (९) परमाणु (१०) ए, दश दिवंता मणुलने ॥ १ ॥ अर्थ- चुलानो दृष्टांत १, पासानो दृष्टांत २, धान्यनो दृष्टांत ३, जुवटानो दृष्टांत ४, रत्ननो दृष्टांत ५, खप्ननो दृष्टांत ६, चक्रनो दृष्टांत ७, चर्मनो दृष्टांत, धुंसरानो दृष्टांत ए, परमाणुनो दृष्टांत १०, ए दश दृष्टांते मनुष्य जव पामवो दुर्लन बे ॥ ( या दश दृष्टांतनो विस्तार बीजा ग्रंथोमां घणो बे परंतु ग्रंथ गौरवताना कारणे अयां किंचित् मात्र दर्शाव्यो बे ) मनुष्यजवनी डुर्लजता उपर पहेलो चुलानो दृष्टांत. कंपीलपुर नगरमां ब्रह्म राजा राज्य करतो हतो. तेने चूलणी नामे रंजा समान महा स्वरुपवान राणी हती. तेनी कुक्षीने विषे चौद स्वप्न सुचित ब्रह्मदत्त नामनो चक्रवर्त्ति पुत्र पेदा थयो हतो. ब्रह्मदत्त कुमारनी बाल्यावस्थामां तेना पिता ब्रह्मराजा परलोक सिधाव्या पछी ब्रह्मराजाना चार मित्र राजाउए वाराफरती कंपीलपुरमा रही ब्रह्मदत्त कुमार योग्य उमरनो थाय त्यांसुधीराज्यनी सार संजाल करवानुं कबुल करी, प्रथम दीर्घ राजाने राज्य सोंपी ऋण मित्रो पोताने नगरे गया. दीर्घराजा राज्य वहीवट चलाववा लाग्यो. केटलोक वखत वित्या बाद अंतेर सुधी जाव याव करतां चूली राणी खुबसुरत तेमज लघु वयनी हो दीर्घराजानी दृष्टीए पडतां ते तेना उपर मोहित थयो. प्रथम तेर्जनो नेत्र मेलाप थयो. त्यारपठी वचनालाप थयो बेवट कायानो संबंध पण थयो. खीर नीर परे तेर्जने पर - स्पर प्रीतिनी गांठ एवी तो बंधाई गई के एक कण मात्र एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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