SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाषान्तर सहित. ४ए ते पोतपोतानी उलखीने ले जा." आ ढंढेरो सांजली नगरजनो घणा राजी थया अने सर्वे पोतपोतानो माल उलखीने ले गया. नगरमा जे चोरनो उपजव हतो ते शांत थयो. अनयकुमारनी संगतने लीधे ते शुक श्रावक थयो भने बार व्रत ऊचरी उत्तम धर्मनां काम करी श्रायु पूर्ण थये काल करी स्वर्गनां सुख पाम्यो. __ श्रा कथा उपरथी सार ए ग्रहण करवानो ने के, जाव रहित पणे पण प्रजुनी वाणीनी फक्त एकज गाथा कुलहीन कोली जेवी हलकी वर्णना अने हमेशां चोरीनो धंधो करनाराए सांजली हती तो मात्र एटलाज ज्ञानथी रोहिणीयो चोरीमा पकमातां बच्यो अने उत्तम पुरुषनी सोबत थई, श्रावक थयो भने स्वर्गे गयो, तो शुद्ध नावथी ज्ञान प्राप्त कर्यु होय तो तेना लाननी तो वातज शी करवी ? तेथी तो था लोकमां सुख संपदा मलवा उपरांत परलोकमां स्वर्ग अने मोदनुं सुख मले. माटे ज्ञान नणवानो उद्यम करवो अने तेमां जणाव्या प्रमाणे वर्तन करवू. ॥ ज्ञान उपर मास अने तुस नामना बे नाईनी कथा ॥ मास अने तुस नामना बे नाई हता. तेए वृद्धावस्थाये दीक्षा ग्रहण करी. परंतु तेउने जणतां आवड्यु नहीं अर्थात् जणवानी महेनत लेवा बतां शिखी शक्या नहीं तेथी मनमां खेद करवा लाग्या, जे आपणने एके पद जणतां नथी श्रावस्तुं तो आपणने ज्ञान विना शो गुण थशे? अने लोकमां पण कोण आदर करशे ? श्रा प्रमाणे सोच करता चिंतातुर बेठेला ए बन्ने साधुने गुरुमहाराजे दीवा. ते वखते गुरुए तेउने पुज्युं के, तमे शी चिंता करोगे ? बन्ने साधुए जे परमारथ हतो ते कह्यो अर्थात् नणतां एक पद पण मुखपाठ यतुं नथी, ए खरी हकीकत गुरुमहाराजने तेउए निवेदन करी. गुरुए कह्यु के, ए वातनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy